शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

तुम

तुम धोखे खाती रही और संभालती रही
दर्द ने बढ़ाये हाथ और तुम थामती रही
इन्ही सब के बीच रिश्ता प्यार का मिला
धरोहर न और को मिले तुम टालती रही

तुम आज की हो यही ज़माना कहता है
मिला जो लुटाती हो ज़माना कहता है
मुस्कुरा सहती रही सितम जब भी हुये
बिन तराशा पत्थर हो ज़माना कहता है

मोती तेरे अश्क़ न हो जाएँ इश्क हमारा
कत्ल ए आम हो ग़म तेरे इश्क हमारा
शानो पर तेरे दम निकले जब निकले
जहान रश्क करे ऐसा हो इश्क हमारा
 

बुधवार, 19 दिसंबर 2012

आल्लेलुइआ

ये घटना है बहुत सिंपल पर लगती गड़बड़झाला
क्लास में एक शैतानी बच्चा नाम नटखट लाला
टीचर उससे सवाल का जवाब पूछते घबराती
अगर वो पूछता तो उनका जवाब भी नही देपाती

था स्कूल का इंस्पेक्शन और टीचर को थी टेंशन
नटखट को कैसे रोकें वो हर प्रश्न पर देगा रिएक्शन
उसे समझाया कि कल की छुट्टी वो स्कूल न आये
पर वो आया देखा सभी टीचर खड़े पसीने से नहाये

इंस्पेक्टर ने आते ही पूछा संसार में हैं कितने देश
सब शांत बैठे थे नटखट को आ रहा था आवेश
उसने उठाया हाथ टीचर्स नोचने लगे अपने केश
नटखट चिल्लाया सर सिर्फ एक देश बाकि विदेश

इंस्पेक्टर चकराया बोला तूने कहाँ से पाया दिमाग
बोला मैडम की ज़र्रा नवाज़ी वर्ना काबिल न थे बाप
अच्छा एक प्रश्न और
बताओ मुझे क्रिकेट,  एक ओवर में कितनी बाल
टीचर समेत सब बोले सर एक ओवर में छ  बाल
इंस्पेक्टर के बोलने से पहले नटखट बोला गलत
इंस्पेक्टर बोला तुम हो गधे यही तो है सही जवाब
बाल तो होती एक  है फेंकी जाती छ बार जनाब

नटखट बोला सर मै आपसे कुछ पूछना चाहता हूँ
इंस्पेक्टर बोला अवश्य देखें क्या है अपना भविष्य
पूछा उसने सर इजिप्ट के बच्चे क्यूँ रहते कंफ्यूज
इंस्पेक्टर समेत सभी टीचर्स  का उड़ गया फ्यूज
वो बोले नही ऐसा तो उन्होंने कहीं नही सुना पर
तो उनके डैडी मरकर क्यूँ मम्मी बन जाते हैं सर
एक और, सेव को आधा काटें वो दीखता किसके जैसा
सब थे मौन,वो बोला  सिम्पल दुसरे  आधे कटे हिस्से जैसा

कोई कुछ नही बोल रहा था अंदर खून खौल रहा था
पिद्दी सा विद्यार्थी, उनकी नॉलेज तौल रहा था
सोचा चुपचाप जाने में भलाई नही तो करेगा  खिंचाई
अनाउन्स हुई क्रिसमस वेकेशन न्यू इयर तक गयी टेंशन

छुट्टियों के बाद अजब नटखट का स्वभाव हो गया गजब
न छेड़ न शोर लगा नटखट नही है कोई और
नटखट ने जब बताया क्रिसमस की रात थे यीशु साथ
यीशु ने समझाया जीवन वही जो किसी के काम आया
करुना दया प्रेम और क्षमा के विषय में मुझे समझाया
इसलिए यीशु के उपदेशों को न्यू ईयर RESOLUTION  में अपनाया
आल्लेलुइआ आल्लेलुइआ आल्लेलुइआ आल्लेलुइआ

मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

समीक्षा

तूफान था आया गुजर गया
किधर से आया किधर गया
कल जो डाला छप्पर था
आज फिर से उजड़ गया
एक बार फिर ली परीक्षा
धैर्य ने की जीवन समीक्षा
पुन: जोड़ कर टुटा जीवन
फिर टुटा टुटा सँवर गया




रविवार, 16 दिसंबर 2012

ख़ता

तुम रूठ गये हमको ख़ता का पता ना चला
तन्हा थे तन्हा हुए ना शिकवा ना कोई गिला

पखेरू हुए दिन संग के, जीना है अब बिन मन के
तेरा आना जन्नत जैसा पर जाना दोजख सा खला

उम्मीदों का दामन् हमने अब भी है थामा हुआ
नजरों पर कब्ज़ा तुम्हारा कतरा-ए-आँसू खला

वो कसमे वो वादे तुम्हारे हमने गीतोँ में थे उतारे
अब गीत सभी हमको बेमानी बेमतलब लगा

नफरत है अगर तुमको, क्यूँ सपनों में आते हमारे
दीवाना कहे सबसे कोई मौत से दे अब मिला


  

शनिवार, 15 दिसंबर 2012

हार चिंतन

हारे पर ये चिंतन क्यूँ लड़ने से पहले न किया 
जंग लगे हथियारों से क्यूँ फिर तूने जंग किया
सेना तेरी तेरी न थी तेरे लिए रणभेरी न थी 
बिन सोचे बिन जाने तूने क्यूँ हार का रंग लिया

अजय सारथि था रथ का, तेरे बंधन बंधा हुआ
जो तू सुनता ज्ञात उसे, न होता जो आज हुआ
तन कमजोर मन कमजोर, फिर ये आत्मघात
दुश्मन कौन समझ जरा कैसे हुआ ये पक्षपात

अभी समय है संभल सारथि मार्ग का ज्ञाता है
मार्ग वही चुन उसे पता है मार्ग कहाँ से जाता है
अजय अजय है कृष्ण रूप धर, मार्ग दिखायेगा
जिस मार्ग को तू न समझे जीत वही से लायेगा

उठ खड़ा हो मत हो निराश तन को कर मजबूत
साक्ष्य तेरे समक्ष खड़ा दुश्मन हो नेस्तनाबूत
तेरे जीवन की भूमि की छुपी उर्जा को पहचान
पीठ पीछे जो वार हुआ तू उनकी कर पहचान

          

शनिवार, 8 दिसंबर 2012

प्यार प्यार है



 प्यार अँधा होता है सब जानते हैं
प्यार गूँगा होता है सब जानते हैं
प्यार बहरा होता है सब जानते हैं
प्यार गहरा होता है सब जानते हैं

प्यार को न चाहिये हाथ और पैर
प्यार नही जानता अपना या गैर
प्यार प्यार चाहता है न कोई बैर
प्रेम करना है स्वर्ग की सुखद सैर

प्यार अनुभूति है व्यापार नही
प्यार स्वतंत्र है कारागार नही
प्यार सर्वस्व है चारदीवार नही
प्यार एक पुष्प है तलवार नही

प्यार को देखो हर रंग में है
प्यार को पाओ हर संग में है
प्यार कण कण हर क्षण  में है
प्यार सत्संग संग रण में है

प्यार मीरा सूर यीशू रहीम है
प्यार पर्वत और महीन है
प्यार जात का  मोहताज नही
प्यार राजा का कोई ताज नही

प्यार कोई सीख नही
प्यार कोई भीख नही
राजीव समझ प्यार को
यदि जितना है संसार को 

शनिवार, 1 दिसंबर 2012

चलते चलते

जीने की तमन्ना हम भी रखते हैं
खुशिओं के साथ गम भी रखते हैं
ठहाके लगा कर हँसाते हैं तुमेह
पर आँखों नम  हम भी रखते हैं

xxx                          xxx


तुम मिलना नही चाहते कोई बात नही
न देखना दिखाना न दिल में जज़्बात सही
आग लगानी थी ज़माने ने लगा दी
पर तन, मन की प्यास बुझाएगा वहीं

xxx                      xxx



हम जानते हैं तुमेह हमारी ज़रूरत नही
पर जहाँ में जिया दूसरों के लिए जाता है
राजीव पर अहसान जो दो कदम संग चले
कोई पूछे मरने के बाद कैसे जिया जाता हैं

गुरुवार, 22 नवंबर 2012

इंतजार

क्यूँ मेरे दर्द का अहसास नही, 
दिल तुम्हारा तुम्हारे पास नही 
खो गये वो जुबां के लफ्ज़ कहीं 
जुदाई का होगा न निशान कहीं

हम थे कभी पर आज हम न हैं
तुम और मै थे पर हम हम न हैं
भरोसे का दायरा तुमने समेटा
हम तो वहीं हैं पर धूल ने लपेटा

इंतजार है क्यूँ तुम फिर आओगे
सब भूल मुझमे फिर सिमट जाओगे
मरेंगे नही बस इतना याद रखना
शरीर खामोश, आँख खूली पाओगे


सोमवार, 12 नवंबर 2012

50वां साल

50वां था चल रहा आदत ए इश्क न गई
वो आई मदहोश कर सब बाँध ले गई
आँख तो तब खुली जब न मिली पतलून
वाकया अजीब था तुम समझ लो मज्मुम

बात सिर्फ पतलून की होती तो चल जाता
शाम वो जब आएँगी उतरी हुए की उतारेंगी
आग लगे तन को क्या सूझी बूढ़े मन को
बेठे बिठाये को बिठाया निगल तू गम को

इतनी सुंदर न थी जो खड़ा हो गया शरीर
अब सब देखेंगे तेरी बनी बिन पतलून तस्वीर
पर ये मन मान जाये तो समझ आएगा
वर्ना फिर देख हसीना राजीव भटक जाएगा

शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

ना आवेगा

नया सवेरा
नई आशा
पर जीवन की परिभाषा
ना बदली है ना बदलेगी

खिलें सभी
मिलें तभी
एक स्वप्न जैसी यह आशा
ना पूरी हुई ना होगी

नीचा ऊँचें
ऊँचा खींचे
दिखे बराबर की टोली
ना दिखी है ना दिखेगी

एक विश्वास
अपने ऊपर
दूजे को ना सिद्ध करें
ना जमा है ना जमेगा

जीवन मृत्यु
मृत जीवन
समझ में सबको आवे
ना आया है ना आवेगा   

मंगलवार, 24 जुलाई 2012

छदम आहट

एक  सफर पर निकला था
एकांकी मन सम्भला था
तभी  तुम्हारी छदम आहट
मुझको मुझसे हिला गई

मंजिल न थी दूर कभी
बस कुछ कदम दूर थमी
पाने को था कदम बढाया
भटका फूल खिला गई

निश्चय अपना लक्ष्य था
पाना ही एक सत्य था
पर तुम एक ठोकर बनकर
लहू में पाँव सना गई

पूजा तुमको देवों संग
खुशियाँ बाँट हुए नंग
पर तुम जानकर जाते हुए
क्यूँ दुखती रग ही दबा गई

माँगा न था पूजा था
न तेरे सा कोई दूजा था
राजा थे अपनी चाह्त के
पर तुम भिखारी बना गई

चलो अब न कोई सपना है
न तुम सा कोई अपना है
एक बार फिर कमर कसी है
मंजिल को जो तुम भटका गई 

मंगलवार, 17 जुलाई 2012

नई किरण की दस्तक

आज सुबह जब आँख खुली
एक नई  किरण ने दस्तक दी

उसकी चमक में आँख मली
बीता हुआ था सब रीत गया
सपने जो हकीकत थे समझे
मन पल में ही सब जीत गया

अब बीते का अफ़सोस नही
मन में सपनों का बोझ नही
नई किरण संग नया सवेरा
जो चला गया वो ना था मेरा

अब उठ खड़ा हो मन मेरे
पोंछ लकीरें अब मस्तक की
नई राह अब देख दिखे तेरी
उस नई किरण ने दस्तक दी 

सोमवार, 9 जुलाई 2012

प्रेम में न जिए

कैसे तबाह करके मुझे तुम चले गये
एक झलक दिखला के दीवाना सा कर गये
आज़ाद था घूमता दिल की लगी से दूर
दिल को क्यों लगा कर दिल्लगी सी कर गए
जग में कोई जिये तो जीने उसे तुम दो
दिल को न वो जानता दीवाना न तुम कहो
मोहब्बत की उस गली से उसे वास्ता नही
हुस्न की झलक से क्यों मदहोश तुम करो
राजीव देख जग को अब कुछ इस तरह कहे
करुणा का रस जो पिये वो प्रेम में न जिए   

रविवार, 1 जुलाई 2012

बदल समय संग

बदलता समय बदलते लोग
न जो बदले कष्ट रहे भोग
आज जो अपने कलके सपने
दिल के वो सब बनेंगे रोग
सीढ़ी बनायेंगे सब चढ़ने को
चढ़ते ही तुझे भुलायेंगे लोग
दोष न उनका होगा प्यारे
समय  संग बदले सब लोग
तेरी करनी तुझे  ही  भरनी
आँख मूंद क्यूँ रहा था सोच
आज जो पाया क्यूँ पछताया
बदल समय संग जैसे लोग

मंगलवार, 26 जून 2012

भूल जायूं मुमकिन नहीं

तुमेह भूल जायूं ये मुमकिन नहीं है
हमे भूल जाओ  न इस पर यकीन है

वो तपती दोपहरी वो नीम की छाया
गुड्डे गुड़िया का ब्याह था रचाया
अपने खेल  में तुमेह ही था ब्याहा
आज खो गई मेरी गुड़िया कही है

यौवन की दहलीज पर चढ़ रहे थे
हाथ में हाथ थामे यूँ बढ़ रहे थे
संग देख कर यूँ नयन जल रहे थे
लगता था जैसे जन्नत यहीं है

तुम दूर हो मुझसे यह तो पता है
हो किसी और के मेरी क्या खता है
दिल ले गये संग में न मांगते हैं
पर ये क्यूँ कहते हो जीना यूँही है

खुदा से दुआ में ये अब मांगते हैं
ज़माने की खुशियाँ दामन भरा हो
गम का न कोई साया संग खड़ा हो
अश्कों वहाँ न जाना राजीव यहीं है


तुमेह भूल जायूं ये मुमकिन नहीं है
हमे भूल जाओ  न इस पर यकीन है


रविवार, 24 जून 2012

ज़ख्म

जिनसे हमे थी नफ़रत तुम्हारे वो मीत हुए
ज़ख्म जो दिये हैं तुमने हमारे वो गीत हुए

जब भी मिला है मौका ज़ख्मो को यूँ है छेडा
हर  रिस्ते ज़ख्म पर तुम  मुस्कान ही लिये

अपनी थी ये नादानी विश्वास तुम पर करके
नफ़रत भरी नजर की चाहत में यूँ जिये

एक वादा कर सको तो अहसान हो तुम्हारा
मोहबत अगर हो ऐसी न मोहबत उसे कहे

खुदा उनके गुनाह बक्शे मोहबत जो  यूँ करे
ऐसी मोहब्त राजीव  दुश्मन भी नही सहे

बुधवार, 13 जून 2012

लिखने वाले कहाँ गये

लिखते थे जो लेख ऐसे
लगे नया साहित्य जैसे
आज तरसती लेखनी है
वो लिखने वाले कहाँ गये

हर्फों ने जिनके वर्कों पर
समाज सजा बसाया था
पीड़ा दूजे की सहन कर
पीड़ित का दर्द बताया था
वो पीड़ित अब कहाँ गये

रस को मथ अपने भीतर
रसिक को स्वाद चखाते थे
जिस रस में वो थे  माहिर
बस वही रसपान कराते थे
स्वंम पेलू अब कहाँ गये

आज के तुम लिखने वाले
मुझको थामे लिखते जाते
मै चलती जाती तुम चाहते
हर्फों पर अश्रू  जमते जाते
हर्फों के अर्थ अब कहाँ गये

लिखते थे पर न दिखे कभी
जब दिखे तो नयन बहे वहीँ
वो दर्द संजोते थे या अपनाते
बस मै लेखनी ही जान सकी
अर्थों के अर्थ अब कहाँ गये

शनिवार, 9 जून 2012

जीवन मन्त्र

पाँच की है कैद, फँसा कब निकलेगा
पाँचों खड़े मुस्तैद, न कोई पिघलेगा
देंगे दुलार करेंगे प्यार, तू फँस जायेगा
याद रहेंगे ये ही, तू खुद को भुलायेगा
अंत समय जब आये, तो याद आएगा
जीवन जीया, कुछ न किया, पछतायेगा
पसीने संग खून बहाया, खूब कमाया
अंत में जब चला, तो खाली हाथ आया
समय नही है बहुत, अब भी तू चैत जा
क्यों आया तू जग में, सोचने बैठ जा
तेरे अपने न तुझे, अपने संग रखेंगे  
पंछी उड़, तेरा पिंजरा आग पे रखेंगे
उठ खड़ा हो, अब कब खोजने निकलेगा
पांचो को कर वश में, कैद से निकलेगा


बुधवार, 6 जून 2012

पंछी

तुने प्यार किया था हवाओं से
अब धोखा मिला तो कसूर क्या
क्यूँ दुखा रहा है दिल को अब
हवा ठहरी क्या कभी एक जगह

तुने नाव उतारी थी उस पानी में
तुझे घमंड था हाथ पतवार का
अब देख भंवर में फंसा है तू
तुझे पानी की मार का न पता 

तुझे तेरी वफ़ा पे तो नाज़ बहुत
तुने कभी किया न शिकवा गिला
आज जब वो चले तुझे छोड़ कर
तुने  उनकी जफा को वफ़ा कहा

उड़ते पंछी कब बंधे एक डाल से
क्यूँ डाल कहे वो थे बेवफ़ा
अब उड़ गये उन्हें उड़ने दो
तकदीर में था तेरी यही बदा   


सोमवार, 4 जून 2012

जिंदगी आती नहीं

तुमने आना बंद किया है जिंदगी आती नहीं
मौत जो थी महबूबा वो अब समझ पाती नहीं

तेरे नाम के सिवाय और कुछ भाये कहाँ
जानते हो तुम भी अब ये छोड़ हम जाएँ कहाँ
हैं तुम्हारे ही सहारे जिंदगी पायेंगे कहाँ
पा जाते हम भी किनारा छोड़ जो जाती नहीं

प्यार का सागर समझ कूद हम इसमें गये
भंवर जोहती बाट थी तब डूब हम इसमें गये
न इधर के न उधर के बाहर अब जायें कहाँ 
डूबने का डर न होता तुम जो ठुकराती नहीं

नयनो ने तुमको देखा देखते ही रह गये
ज्यूँ मरु में जल हो प्यासे होंठ कह गये
भीगना न था न भीगे वो सूखे सूखे रह गये
आज राजीव की  चाहत थोड़ी भी बाकि नहीं

शुक्रवार, 1 जून 2012

आज की कहानी

आज ये कहानी सुन लो, मेरी जुबानी सुन लो
नयनो को भर न लायें कसम ये हमारी तुम लो

कैसा रिश्ता कैसा नाता, भाग्य का इन्सान विधाता
देखो कैसे कर्म है उसके, छोटे छोटे धर्म है उसके
प्रेम से वो कोसों दूर, एक दूजे को रहा है घूर
उसकी छोटी सोच देखो, बढ़ते उसके खोट देखो
भाई को न भाई भाए, माँ बहिन भी संग न आये
मात पिता की कैसी पूजा, भाए उसको घर ही दूजा
कैसा समय का चक्र पलटा देवी घर की हो गई कुलटा
आज सावित्री ढूंढे न मिलती सीता की भी कमी खलती
राम खो गए बनवासों में इसा मोहम्मद न सांसो में
कैसी शिक्षा और परीक्षा भाई बनने की मिले है दिक्षा
परदेसी सर ताज धरा है देसी अपनी जेब भरा है
भ्रष्टाचारी गुण है अपना देश भी बेचें ये है सपना
राज करने की एक ही निति गद्दारी संग अपनी प्रीति
चाहे जो भी काम करा लो चाटुकारिता तुम अपनालो
क्ल्ल्दार का मोह बड़ा है चाहे लथपथ बाप पड़ा है
ऐसी है ये कहानी सुनलो बिकती भरी जवानी सुनलो

भगत बोस जो होते, गाँधी पटेल संग में रोते
हश्र अपना ये होना था, आज़ादी को क्यूँ रोना था
आज हम जहाँ में होते पोते पोती संग हम सोते
काहे रस्सी पर थे झूले, गोली खा जलाये चुलेहे
विदेशी अपने देश से भागे मार हमारे हम न जागे
काहे भूले वो दिन अपने पड़े थे उनके जूते चखने
हम गधे से आज खड़े हैं वो फिर हमारे घर पड़े हैं
अब के आये न निकलेंगे न गुरु से फूल मिलेंगे
परदेसी का नहीं भरोसा कब दे जाये प्यारा धोखा
पंछी उड़ किस डाल बैठे बहता पानी न है भरोसा
न्याय व्यवस्था चर चर करती, अर्थव्यस्था कभी भी मरती
डॉलर अब भी रूपये से भारी त्राहि त्राहि जनता सारी
नेता क्यूँ बंद देश हैं करते, अक्ल में ये क्यूँ न भरते
मर रहा है देश हमारा जिसका नेता है हत्यारा
संसद जाओ या न जाओ, खाओ चाहे जो तुम खाओ
हाथ जोड़ पाँव पकड़े, आओ अपना देश बचाओ
वरना कहानी बन जाओगे हर जुबान पर आओगे

गद्दारों की कहानी सुन लो, मेरी जुबानी सुन लो
नयनो को भर न लायें कसम ये हमारी तुम लो

बुधवार, 30 मई 2012

मोहब्बत में दुखता बहुत है

मोहब्बत में कहते हैं दुखता बहुत है
मगर मेरी सोचो तो सुखदा बहुत है

प्यारा जो अपना है जीवन का सपना
चाहा सब उसका ही त्यागा सब अपना
जीते हैं मरते हैं उसके लिए ही
क्यूँ ऐसा लगता है विपदा बहुत है

खुदा का करिश्मा जो हम इसमें जलते
बुझाने से बुझती न लगाये ये लगती
हमारा तजुर्बा ये जलके तो इसमें देखो
फिर ये कहोगे वाह आनंद बहुत है

बिन जुर्म के भी सज़ा पाओगे तुम
फूल तुम नही पर महकाओगे तुम
अहसास होगा प्यार का उनके जब
तुम्हे यूँ लगेगा की कर्जा बहुत है

रात कब आई दिन कब छिपेगा
उसके सिवाए तुझे  कुछ न दिखेगा
जियेंगे पर सोच अपनी बस ये कहेगी
प्यार में इतना जीना जीना बहुत है

शनिवार, 28 अप्रैल 2012

हक नागवारा था

मन में उमंग नही थी कि प्यार करूँ, पर हो गया
ठान बैठा था कि कभी न इजहार करूँ, पर हो गया
नजरें चाहती थी तुम्हे हर पल देखना, देखती थी 
खुद को छुपता था तुमसे, पर सामना हो ही गया 

पहले नजरें दरवाजे पर होती थी, पत्र के इंतजार में
पहले नजरें छुप छुप रोती थी, उनके एक दीदार में 
आज  समय  ने करवट बदली, न दीदार न इंतजार 
अब  हम  तरसते हैं उनके, फोन  संदेश  प्यार में
  
आज वो भूल गये वो घंटी, समय के जो पाबन्द थे
रातें करवट में, दूर से लिपटने  के आदतमंद थे 
आज ये  कैसा मौसम  बदला, खोया सा पगला 
बोल पहला हमारा ना  सुना जिसकी खाए सौगंध थे  

समय का तमाचा था जो समय ने घुमा के मारा था 
टुटा हुआ  कांच  सा बिखरा था जो स्वप्न हमारा था 
हम  औन्धे पड़े सोचते रहे, प्यार को ही पूजा हमने
पर उन्हें हक जताना हमारा उनपर  ही नागवारा था  

गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

कातिल न समझो

जिनके लिए हमने छोड़ी थी दुनिया
दुनिया से ही हमको  आज मिटा बैठे
लुट तो चुके थे हम, कुछ भी न बचा था
पर ढूंढ़ कर बचा वो फिर भी चुरा बैठे   

उनका तो वादा था, जन्मो जन्म तक का
अगला न देखा पर, वो आज का मिटा बैठे
हम मिट गये तो क्या, हाथों से उन्ही के
आखिरी सांस जो निकली गोदी में जा बैठे

कातिल न समझो उनको नन्हा सा दिल हैं वो
सादगी ये उन्ही की थी, जान हम लुटा बैठे

ये न समझना लोगो गैर हो गएँ हैं अब वो
कत्ल जो किया उन्होंने, पूरा दिल लगा बैठे
मौत तो आनी है , बचेगा न कोई उससे
एक नजर तो देखो हम जन्नत में जा बैठे

मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

सपने अपने ही न थे

जब सपने अपने ही न थे उनका जाना रोना क्या
बंद आँख में आते रहते डरते जो फिर खोना क्या

हम जो जीते उस हकीकत में जिसमे सब भोगना
खुशियाँ हों या होयें दुखी हम नयनो को है सोचना
मेरा दावा जी कर देखो जो सुख हर चाहो भोगना
क्यूँ कोसा करते हो जीवन थोड़े दुःख से होना क्या

खुद को मुसाफिर समझो पहले फिर सफर का लो मज़ा
सामने बैठा अपना न है कब छोड़ चले सब उसकी रजा
माथ हाथ धर तब तेरा सोचेगा मिली कब की यह सजा
जब तेरा कोई अपना न है खुद में रम छोड़ सब ह्या 

जो दीखता तुझे रात का सपना दिन में न था वो अपना
दिनभर मशक्त करता फिरता रात  में न चाहे जगना
जहाँ से उठाया छोड़ा वहीँ पर लड़ मर रहे अपना अपना
कज़ा ले जब संग चली तो काम न आवे कोई हकीम दवा

जब सपने अपने ही न थे उनका जाना रोना क्या
बंद आँख में आते रहते डरते जो फिर खोना क्या



गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

प्रेम धर्म

सुन लो ये है प्रेम कहानी
तुमने न सुनी तुमने न जानी
चाऊ की जान, थी चाई बस्ती
चाऊ बिना न, चाई की हस्ती
यौवन आया, अग्न लगाया
दोनों बन बागी, विवाह रचाया
सुखी जीवन फल फूल रहा था
तीन कलियों से घर महका था
सुख की सीमा थी अपरम्पार
चिंता मुक्त बस प्यार ही प्यार

एक दिन ऐसा तूफान आया
चाऊ का चाई पर शक गहराया
दोस्त जो प्यार में ईर्ष्या करते
कान भरे और कलंक लगाया
प्यार दोनों का नजर खा गई
चाऊ के दिल ने अपराध पाया
खरीद खंजर पहुंचा घर अंदर
बुद्धि बंद चाई का खून बहाया        
अपराध गहरा पुलिस का पहरा
सजा हुए तो पश्चाताप छाया

तीनो कलियों की किस्मत चमकी
चाई की जान जीसस से बक्शी 
सज़ा हुई पूरी थी शर्मिंदगी दुरी
चाऊ चाई पास, जा भी न पाया
चाऊ चाई बिना, फिरे मारा मारा
अंदर से दुखी, शरीर से वो हो लाचारा
लगने लगा बस, जाने को अब है वो
पूछा भाई कोई,  क्या है तुम्हारा
आँखे बह निकली, चाई सिवा न कोई
पर कैसे मै जाऊं, भरा  पाप से सारा

चाई सुनते ही सब, बेसुध हो भागी
भूल गई बीती, प्रेम कलियाँ जागी
घर लाते ही, सेवा को धर्म माना
चाऊ ने पाया, दूसरा जन्म जाना
प्रेम ले आया, चाऊ चाई सा धर्म
भूल गये सब, वक्त के दिए वो मर्म
समय ने कब , किसको है बक्शा
चाऊ चाई चले गये, छोड़ ये शिक्षा
प्रेम धर्म से बढ़ कर न कोई
प्रेम होई तो चाऊ चाई सा होई 

मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

गलतफहमी का शिकार

ये कहानी है उस हंसते हुए इन्सान की
जो खो गया कहाँ न जान सका जहान भी

हँसता हँसाता था आंसू सबके सुखाता था
वो सबका सब उसके कोई गैर न बताता था
एक दिन सब मिले ख़ुशी में झूम झूम मचले
आज वो दूल्हा बना बनकर देखो कैसे ठना
नजर न उसको लगे हाय न उसको पड़े
हर तरह के काजल उसके छुप छुप लगे
दुल्हन उसकी आई  दुनिया ने ली बलाई
परिचय में सभी चाची ताई बहन बताई

दुल्हन चकरा गई रिश्ते सुन घबरा गई
पूछ बैठी तभी ये सब सगी हैं या पराई 
दुल्हे ने समझाया सबसे प्यार मैंने पाया
खून से न सही दिल से रिश्ता निभाया
एक कुटिल मुस्कान दुल्हन दिखला गई
मन ही मन कसमसाई और झल्ला गई
समय बीतता गया दूल्हा सिमटता गया
धीरे धीरे दूर हो वो सिमित हो सा गया

पहला फूल खिला, बहिन को हक बुआ मिला
दुल्हन ने बहिन का भी दिया रिश्ता हिला
दुल्हे के मन के अंदर दर्द यूँ  जमने लगा
कुछ समय में ही वो मिलने से बचने लगा 
रिश्ते हैरान थे असल से वो अनजान थे
अंदर की ख़ामोशी से हर दिल परेशान थे
उसने हंसते हुए सब दर्द खुद ही सहे
हो रहा था जुदा बिन जुबान कुछ कहे

पर रिश्ते थे प्यार के मिलते यूँ यदा कदा
दुल्हन जान पड़ते ही चली तोड़ रिश्ता सदा
प्यार के रिश्तों को उसने दे दिया वो  नाम
रिश्ते हो शर्मशार बदले सब मरे समान
रिश्तों को कर बदनाम गंदा दे दिया नाम
बहिन भी बदनाम चाची को गंदा  नाम
दूल्हा बदनामी से डर कर यूँ सहम गया
लगा प्रभु का उसपर जो रहम था गया

दुल्हे ने समझाया रिश्तों का महत्व बताया
दुल्हन कुछ न पिघली अलग होने वो निकली
गलतफहमी का शिकार घर की करने लगी फाड़
अडिग अपनी जिद पर ऐसे ज्यूँ जंगल में ताड़
अनहोनी ने वो किया दूल्हा दीखता  बीमार
दुल्हन की नादानी ने किया दूल्हा  लाचार
बोझिल आँखे धीरे धीरे तन्हाईयों में खो चली
हंसता चेहरा बुझ गया आँखें नम सब हो चली 

दुल्हन पड़ी गई अलग थे प्यार के रिश्ते सजग
कमी न होने देंगे पर खोया वो था कुछ अलग
दुल्हन की आँख खुली देखा छायी है  काली घटा
अरमान धरे रह गये खो चुकी थी वो हंसमुख छटा
एक नादान अग्नि में जल कर हुई खुद स्वाह
न लौट सकेंगे वो अब जिनको कर दिया तबाह
दुल्हे राजा माफ़ करो दुल्हन संग इन्साफ करो
मन तभी बोल उठा जैसा किया अब तो वही भरो   
        

सोमवार, 9 अप्रैल 2012

स्वयं संयम

जब जीना माँगा जीवन से जीने का मकसद खींच लिया
जब चाहा मौत हमे आये उसने मौत का पहलू भींच लिया
जीना मरना जब हाथ नही तो क्यूँ चाह  रहें सदा साथ यहीं
न अपने चाहे कुछ भी मिले, न बिन बहार खिले फूल कहीं
खुशियों में अब कैसी ख़ुशी गम में बिन नम अब नयन रहें
शांति चाहे ढूंढे न मिले पर बेचैन दिलों में अब चैन रहे   

          

शनिवार, 7 अप्रैल 2012

हमसफर

मै चला अपने सफर तुम चले अपने सफर
जब चले हम साथ थे बन के निकले हमसफर

मंजिलें न एक थी न हम दीखते हमसफर 
कुछ अजीब सी डगर दोनों चले हम सफर

मोड़ दोनों के अलग राहें भी थी अलग अलग
अलगाव का था ये सफर कैसे थे हम हमसफर

मोड़ पर मिल जाओगे सामने नजर आओगे
सोचेंगे देखा कहीं था जब चले थे हम सफर

राह में अपनी कांटे थे, सब हमने ही छांटे थे
पग न तेरा डगमगाए  तुम चलो अपने सफर

मंजिल जो तुम पा लोगे सफर को निभा लोगे
सोचेंगे मकसद हुआ अब जो चले बन हमसफर
       

सोमवार, 2 अप्रैल 2012

ऐसे खेल जीवन

न खेल तू ऐसे खेल जीवन
जीवन मुश्किल में पड़ जाए
जीना तेरा हो हर पल दूभर
मौत भी दूर खड़ी हो मुसकाय

जब जब चाहा मै तुझे संवारूं
तू दिखती अपने को उलझाये
हर तार तेरा मुझे झटका दे
ज्यूँ छुआ जहाँ विधुत जाए

कितना तुझे बचा कर डोलूं
कितना तुझे हंसा कर डोलूं
जग जालिम  कुछ भी चाहे
तू रहे दिखे उसे आंसूं बहाए 

मैंने तुझे था खूब समझाया
बातों में किसी के तू आना न
पर तू पर विश्वास कर बैठी
अब देख खड़ी तू ही पछताए

ये बात यदि अब भी तू समझे
बचे हुए दिन सुखमय आये
अन्यथा देख  इस  जीवन में तेरे
जो आये वो सिर्फ दुखमय आये         

शनिवार, 31 मार्च 2012

हाय रे मुझे क्यूँ कवि बना दिया (अप्रैल फूल विशेष)

प्रभु मैंने वरदान था माँगा
मुर्ख रहूँ अहसान था माँगा

हाय रे मुझे क्यूँ कवि बना दिया

सुनने को तैयार नही कोई
पर मुझे सबसे सुनवा दिया 
लोग आते अपनी कह जाते हैं
जैसे ही मैं कहता लुप्त हो जाते हैं

बचपन में पढ़ा  करते थे
जहाँ न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि
सोचा तभी कवि बनेगें हर जगह पहुचेंगे
पर ये न पता था अपनी सुनाने 
ढूंढते सुनने वालों को कन्दराओं तक पहुंचा दिया

हाय रे मुझे क्यूँ कवि बना दिया

जहाँ जाते हैं सब छुप जाते हैं
यदा कदा अनजान कोई हमसे मिलता है
खूब हँसता है हँसाता है
जैसे ही पूछता हमारा परिचय
हम गौरवान्वित हो कहते कवि
उसे या तो सुनना बंद हो जाता है
या बिना उत्तर दिए कोई काम याद आ जाता है
भाई ऐसा हमने क्या बता दिया

हाय रे मुझे क्यूँ कवि बना दिया

हे पूर्वज कवियों जब पता था पीढ़ी का हश्र ये
क्यूँ न सपनों में आकर हमे समझा दिया 
काहे भाई सुरिंदर शैल आदित्य जैसे संप्ल दिखा दिए
पुरे नही पर कुछ गुण हममे ला दिए 
आज आयोजक बुलाने से पहले दरियां सिम्त्वाओगे की condition लगाते हैं 
हमारे पूछने पर वो तम्बू लगाने से पहले तम्बू वाले की शर्त बताते हैं 
आज सुनाया दरी को सुनाया उठाया फिर सोते हुए से लिफाफा दिलवा दिया 

हाय रे मुझे क्यूँ कवि बना दिया     
   



 

गुरुवार, 29 मार्च 2012

प्यार हो गया

रिश्ता चैन से टूटे
निंदिया नयन से छूटे
तो समझो प्यार हो गया

जो रहे तू खोया खोया
जग लगे तुझे सोया सोया
बंधन बांध न पाए
बांध सब्र का टूटे
तो समझो प्यार हो गया

सह सके न पल की जुदाई
बस देती ही रहे दिखाई
पलक तू पल भी न झपके
लगे कोई लेगा लूट
तो समझो प्यार हो गया

झूठ से दोस्ती हो जाये
अपनों से आँख चुराए
हर बात पर धडके दिल
कहीं ये न जाए टूट
तो समझो प्यार हो गया


रिश्ता चैन से टूटे
निंदिया नयन से छूटे
तो समझो प्यार हो गया







  

रविवार, 25 मार्च 2012

मै कौन?

पूछूँ मै तो गली गली
मै कौन?
बता कर करदो भली

कोई कहे मै पुत्र और भाई
ये सब तो तुमने भी पाई
सवाल एक मै कौन हूँ सारा
कुछ ने कहा और नाम से पुकारा
नाम के जैसे बहुत रह रहे
मै कौन तुम क्यूँ न कह रहे

मानव ने मानव बतलाया
रिश्तों का जलवा दिखलाया
पदवी से भी मुझे पुकारा
वंश जाती का लिया सहारा

मै कौन प्रश्न से परेशान
है कोई जो बता सके ये जहान
     

शुक्रवार, 23 मार्च 2012

नयी सुबह

छंट गये बादल उड़ गयी धूल
नयी सुबह उठ बिता सब भूल
इस नई किरण के संग तू चल 
कर सपनों को सच्चा हर पल

जब सब कुछ था सब अपने थे
छिनते देखा छितरे वो अपने थे
एकांकी का एहसास हुआ तब
रिश्तों का एक पास हुआ तब

देख तेरे एक द्रढ़ निश्चय ने
तुझको फिर वहीं खड़ा किया
देर न कर न याद कर शूल
नयी सुबह उठ बिता सब भूल




बुधवार, 21 मार्च 2012

कर्राहट करता जीवन

कर्कश कर्राहट करता जीवन यूँ निकला जाता है
क्या पाया जन्म गंवाया नजर कुछ नही आता है

पथरीले पथ रिस्ते रिश्ते घाव बढ़ाते संग साथ चले
पग पग कोशिश करते मंजिल मुझसे दूर दूर चले

एकाग्र न खो व्याग्र न हो बस पथ पर अपने चला चल
छदम भेष में पग पग पर तुझे भटकायेंगे छलावे छल

देख तनिक उस सैनिक को जो छोड़ सब जीता जाता है  
टिमटिमाती लौ जलाती बाती पगडंडी को चमकती है 

तू तेरी मंजिल पाने में अपना सयम क्यूँ खोता जाता है 
कर्कश कर्राहट भरे जीवन में मंजिल की ओर आता है

मंगलवार, 20 मार्च 2012

नारी

श्रद्धा मान पूजी नारी
तुल्य देवी सी सारी
सौन्दर्य  की अद्भुता
ममता माँ में उभारी

आज बिखर से गये  
नारी समस्त वो रूप
नारी को न भाए नारी   

गुण गये कहाँ सूख

नारी नारी का कर रही
शोषण पल प्रति पल
चित्रपट पर देख सदा
दुश्चरित्र कपट व् छल

कंधे से कन्धा मिला
चली छमक संग संग
परनारी संग बोलते
पुरुष को कहे वो नंग

परपुरुष नारी मिले
माने सब संग साथ
बूझो तो झट से कहे
कन्धा कंधे के साथ

हर क्षण नारी पर करे
नारी ही घातक वार
पुरुष काहे सब सहे
विधि की लिखी मार

नारी को नारी दिखे
शारीरिक भूख की मारी
पुरुष छुपा रिश्तों से फिरे
कब कहलाये व्यभिचारी

अब तो नारी सुध लेले
वरना तेरी भी आये बारी
बदन के रिश्ते से बड़े
निभा रही और भी ये नारी

तू क्यूँ कोसती अब जाती
पुरुष संग हो परनारी
पता नही हो पूज्य रुप मे
पर तेरे कारण थू सारी जाति            

सोमवार, 19 मार्च 2012

दूरियां

सूरज दूर बैठा देखे भूखा रहे न कोई
अंधकार जो कहीं दिखे चमकाए वोई

सागर देख चंदा दौड़े पकड़ने को किरन
दुरी न कम प्रेम अजब भड़काए अगन

दूरियां न करती कभी प्रेम में कोताही
नयनन दूर होते तजे प्रेम जाने नाही

प्रेम न माँगा जाए कभी अपने आप ही आये
उपजाए न उपजे कभी उपजे कभी न जाए

  

रविवार, 18 मार्च 2012

अंतिम ठौर

जर्जर पिंजरा हो गया छुटा न पंछी मोह
कैदी समझे नासमझ उड़ने से भय होए

कैसी नादानी लिए चमकाए जिसमे रहे
उड़ान उसकी मंजिल भूल कैद में सोये

जाग अब डैने फैला देख गगन की और
तेरी मंजिल जोह रही तेरी अंतिम ठौर

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

मायने नही बदले

पहले लिखता था तुम्हारे बिना
मायने वही थे पर तुम्हारे बिना
आज लिखता हूँ तुम्हे तकते हुए
पर मायने नही बदले लिखते हुए

तुमने कहा कविता अब बदल गई
कविता वही कलम राह बदल गई
नशा तब भी था कलम के जाम में
नशा अब भी है कविता के नाम में

बदले न तो हम न ही हमारी लेखनी
अगर बदला कोई तेरी ये प्रेम रौशनी
जितना तुम हमारे भीतर समाते हो
उतना हमे भीतर से बाहर कराते हो

पहले लेखनी तरसती थी प्रेम पाने को
अब धडकती है तेरे प्रेम में खो जाने को
न मायने बदले न ही कलम की गति
अगर बदला है कोई तो भाग्य इठलाने को               

शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

?

उदास हूँ तुमेह ही क्यूँ दिखा,
                 चेहरा खिला रहता है ज़माना कहता है
छिपा अश्क तुमेह ही क्यूँ दिखा 
                  रोतों को हँसाता हूँ ज़माना कहता है   

रविवार, 29 जनवरी 2012

मंजिल है दूर

पथ पर निकला एकांकी संग ले चला बीती झांकी
जब थकन एहसास हुई तुम तभी से मेरे साथ हुई
उस क्षण जो तुमने बोला कानो में था मिश्री घोला
थकन गई किस राह निकल पता चला नही बोला
हर पथ पर मिलनेवाला मेरी ओर देखता तुम पर
तुम बस एक मुस्कान फैला हर लेती गुमसुम पर

हर राहगीर न पाता होगा हमसफर जो हो तुम सा
तभी तो मंजिल दूर लगे उन्हें जिसे पा लें  हम सा
ये जीवन की लहरें हैं उठा पटक ले झपट हमे चलें
जो न हो हमसफर तुमसा मंजिल है दूर अभी खले
अरे पथिक सम्भल पहुंच कर मंजिल के तू निकट
रेतीली भ्रांतियां कर रही राजीव का पथ और विकट

गुरुवार, 26 जनवरी 2012

नैन मुस्काएं

मेरे क्यूँ नैन बहते हैं कोई तो आकर ये पूछो
तड़प कैसी जगी इनमे कोई उठा कर तो पूछो

ये चाहते गुनगुनाना है किसे पर ढूंढ़ते हैं ये
सरगम यूँही छिड जाए जो तुम आकर ये पूछो

दिखे जो ग़म तुम्हारे संग तो कैसे नैन मुस्काएं
दुआ  बस तेरी खुशिओं की खुदा से जाकर ये पूछो 
     
घर दर की इन्हें चाहत कोई कान्धा नही मिलता
ये चाहते हैं ठहर जाएँ अगर मुस्कुरा के तुम देखो

प्यार में छलछला जाते ख़ुशी अपनी दिखाने को
अगर यकीं नही तुमको प्यार लुटाकर तब पूछो
 
वफा से पहले लगे बा या लगे बे के बाद वफा
एक से जिंदगी मिलती दूजी से तबाह समझो  

प्यार की बेल को देखो दिनोदिन बढती जाती है
बिना ही खाद और पानी, ज़रा लगा के तुम देखो
 
सागर में तरसता सीप बूंद एक मीठी पाने को
मोती हर बूंद बन जाये तड़प जगा कर तो देखो 
 
मेरी दीवानगी हद ने मुझे जला कर रखा है
चाह थी चाँद पाने की छुपा सूरज ने रखा है

सोमवार, 23 जनवरी 2012

कुर्सी

जब आम आदमी था मै  
सब मेरे मै सबका था
याद मुझे वो दिन आता 
कुर्सी पाने मै लपका था   

जब से कुर्सी चाही मैंने  
बस कुर्सी ही चिपक गई 
सीढ़ी जो उपर ही लाती
चढ़ते ही वो खिसक गई 

अब न मुझको तुम दीखते 
न मुझ तक पहुंचें आवाजें 
कुर्सी वालों की दुनिया मै 
जनता के हैं बंद दरवाजे

कुर्सी की चाहत में जीना
कुर्सी की चाहत में मरना
कुर्सी पाने की चाहत में
दंगे, संग गाली और धरना
     
कुर्सी वालों की दुनिया में
अपने पराये का भेद कहाँ
नेकी से न कोई वास्ता
पर करते नेकी नेक यहाँ

साहूकारों की खिलती बांछे
जिनका मुझ पर दावँ लगा 
मेरी जीत में जीते हैं वो
आते पाते जाते आस जगा

जिनसे नफरत सदा रही 
वो द्वार बंधे यमदूतों से
कब किसकी आई लें चलें
हम जियें मरें यूँ भूतों से

राजीव क्यूँ चाहे कुछ करना
जब भरने का अवसर आया
तकदीर ने खोले सब ताले
भर,खाली बोरे,माणिक माया

शनिवार, 21 जनवरी 2012

आज हम आज़ाद हैं

आज हम आज़ाद बापू आज हम आज़ाद हैं 
आज हम आज़ाद बापू आज हम आज़ाद हैं

तोड़ कर अपनी  गुलामी, पायी तोपों की सलामी
टप टपा टप टप टपा टप,  धुन सुनातें हैं सेनानी 
राजपथ पर आज उमड़ा, यह गज़ब सैलाब है 
आज हम आज़ाद बापू आज हम आज़ाद हैं

आज़ादी पाने का सपना पूरा कर वो लायें हैं 
खुद को खोया है उन्होंने आये उनके साये हैं  
कोख जिनकी जन्मे थे वो, हो गई आबाद है 
आज हम आज़ाद बापू आज हम आज़ाद हैं

नौजवानों कान खोलो जान लो करना है क्या
इस वतन की माटी से ये महके आज़ादी सदा
मिट न पाए नाम उनका तन से जो आज़ाद है  
आज हम आज़ाद बापू आज हम आज़ाद हैं

चंद गद्दारों ने अपने अपनों को मरवाया था
गद्दारी न हो वतन में जिसने सब गंवाया था
झुक गया था जो शर्म से, सर उठा वो आज है
आज हम आज़ाद बापू आज हम आज़ाद हैं

हिंद की माटी में देखो सोये माँ के लाल हैं
हिंद को है नाज़ जिनपर उनका अब अकाल है
आज़ादी की खुशबु पाकर हिंद मालामाल है
आज हम आज़ाद बापू आज हम आज़ाद हैं

लहलहाता है तिरंगा इठले जमुना इठले गंगा
एकता के सामने दुश्मन यूँ भागा हो के नंगा
देश के भविष्य तुम हो अब न हो बर्बाद ये    
आज हम आज़ाद बापू आज हम आज़ाद हैं


मंगलवार, 17 जनवरी 2012

पुरुषार्थ जगाओ

पुरुष हो पुरुषार्थ जगाओ
कह कर वो तो चले गए
बदला समय ना सोचा होगा
नारी से ही हम छले गए

पुरुष पुरुष सा दीखता ना अब
नारी चरणों में शीश नवा
बस ये जन्म सुख से बीते
दांत मुख भींच सहे गए

सावित्री सीता हुई धरा पर
सुखद पौराणिक हैं कथाएं
पर पुरुष संग या यम जंग
दोनों में नारी सम ही बहे

आज का युग नारी चरणों में
पुरुषार्थ पुरुषों का यूँ बहे
बदली विधि की लिपि यूँ
हर क्षण धक धक लगी रहे

जो बीत गया उनकी कृपा से
आने वाला भी सुखद भए
पुरुषों अब पुरुषार्थ जगाओ
छोड़ अहम मान जो नारी कहे
  
 

सोमवार, 16 जनवरी 2012

अपराजिता

करुणा
बन अपराजिता
अर्पण कर
समर्पण जगा
बेल सी लिपट
वृक्ष निगल गई     

बुधवार, 4 जनवरी 2012

आज का दिन मै कैसे भूलूं

आज का दिन मै कैसे भूलूं
जबकि मुझ संग तुम चले हो
आज का दिन मै कैसे भूलूं
जबकि मन संग मीत मिले हों
छाज सा जीवन छन रहा था
उसमे कुछ अंश तुम मिले हो
अनचाही अत्रप्त धरा पर
अधरों ने आकर पुष्प छुए हों
खो चूका था मायने जिनके
आकर तुम ने अर्थ दिए हों
बालक मन था भटका भटका
बाँहों ने तुम्हारी झूल दिए हों
आज का दिन मै कैसे भूलूं
जबकि मुझ संग तुम चले हो


 



मंगलवार, 3 जनवरी 2012

चंदा की चांदनी

उम्र का ये पड़ाव
उफनता शांत पडा था
अचानक जैसे चंदा को देख
उम्र छोड़ लहरें मिलने दौड़ी

एक बदली धुंधला कर गई
पर चमक यादें फिर लाई
तुम तो अब तक न समझी
पर लगता था उम्र लौट आई

जर्जर तन न था किसी काबिल
पर उसपर लौहा प्रहार कर सम्भालने वाला
स्वप्न जैसे तुमसे पुन साकार हुआ
एक चंदा की चांदनी बन तुम आई