सोमवार, 2 अप्रैल 2012

ऐसे खेल जीवन

न खेल तू ऐसे खेल जीवन
जीवन मुश्किल में पड़ जाए
जीना तेरा हो हर पल दूभर
मौत भी दूर खड़ी हो मुसकाय

जब जब चाहा मै तुझे संवारूं
तू दिखती अपने को उलझाये
हर तार तेरा मुझे झटका दे
ज्यूँ छुआ जहाँ विधुत जाए

कितना तुझे बचा कर डोलूं
कितना तुझे हंसा कर डोलूं
जग जालिम  कुछ भी चाहे
तू रहे दिखे उसे आंसूं बहाए 

मैंने तुझे था खूब समझाया
बातों में किसी के तू आना न
पर तू पर विश्वास कर बैठी
अब देख खड़ी तू ही पछताए

ये बात यदि अब भी तू समझे
बचे हुए दिन सुखमय आये
अन्यथा देख  इस  जीवन में तेरे
जो आये वो सिर्फ दुखमय आये