हर क्षण मानव एक भ्रमित जीवन में पलता
सचाई से दूर स्वयं अपने आप को चलता
सुख सुविधायं साथी सारे
क्षण भंगुर के नाती प्यारे
खाली हाथ आया पथिक तू
खाली हाथ ही चलता
हर क्षण मानव एक भ्रमित जीवन में पलता
सोमवार, 21 जून 2010
रविवार, 20 जून 2010
कहानी शरीर की
आत्मा के अमर होते ही
भस्म हो गया शरीर
संग पानी के डोलता फिरा
चंचल मानव शरीर
लिया इस जल को खींच
जड़ों ने, वृक्षों पौधों के
बदली भस्म पुष्पों फलों
वनस्पतिओं में
भोजन स्वरुप वनस्पति को
किया ग्रहण दम्पति ने
यज्ञ किये शरीर में
आत्माओं ने
बदल रूप आई भस्म
रक्त मांस के लघु कणों में
जुड़े वो कण बिंदु
गर्भ के क्षीर सागर में
पुन रूप बदल आई भस्मी
लिए एक बालक का जीवन
भस्म हो गया शरीर
संग पानी के डोलता फिरा
चंचल मानव शरीर
लिया इस जल को खींच
जड़ों ने, वृक्षों पौधों के
बदली भस्म पुष्पों फलों
वनस्पतिओं में
भोजन स्वरुप वनस्पति को
किया ग्रहण दम्पति ने
यज्ञ किये शरीर में
आत्माओं ने
बदल रूप आई भस्म
रक्त मांस के लघु कणों में
जुड़े वो कण बिंदु
गर्भ के क्षीर सागर में
पुन रूप बदल आई भस्मी
लिए एक बालक का जीवन
शुक्रवार, 18 जून 2010
यही तो है आज का समाज
एक दूजे की करें बुराई
इसमें हमें दिखे भलाई
यह ही चमचागिरी का राज
यही तो है आज का समाज
झूठ से चलती दुनिया सारी
सच्चाई फिरती मारी मारी
यह है हमारा चरित्र आज
यही तो है आज का समाज
तेरी इज्जतबस मै उतारू
तुझको फिर भी मै धिकारून
यह है बचा भाईचारा आज
यही तो है आज का समाज
जो कुछ कहूँ ना रखूँ याद
खाऊ जीतने के बाद
यह है अपना नेता आज
यही तो है आज का समाज
इसमें हमें दिखे भलाई
यह ही चमचागिरी का राज
यही तो है आज का समाज
झूठ से चलती दुनिया सारी
सच्चाई फिरती मारी मारी
यह है हमारा चरित्र आज
यही तो है आज का समाज
तेरी इज्जतबस मै उतारू
तुझको फिर भी मै धिकारून
यह है बचा भाईचारा आज
यही तो है आज का समाज
जो कुछ कहूँ ना रखूँ याद
खाऊ जीतने के बाद
यह है अपना नेता आज
यही तो है आज का समाज
रविवार, 6 जून 2010
वश
कहाँ के रिश्ते कहाँ के नाते
यहीं के सब हैं यहीं रह जाते
संसार एक मोहमाया जाल है
योगी इसमें कहाँ फँस पाते
तेरा जीवन तेरे करम पे
तुझे वश करना है बस मन पे
इसके जीते कब हारे जाते
कहाँ के रिश्ते कहाँ के नाते
आत्मकथा
लोग आत्मकथा लिखते है
क्या ऐसे हैं
जैसे वो लिखते हैं
या लिखने जैसा
वो सभी दीखते हैं
लोग आत्मकथा लिखते है
हमारा धर्म
आओ सुनाऊं तुमेह एक कहानी
राम रहीम की थी दोस्ती पुरानी
चक्रम घंचक्रम चक्कर में रहते थे
राम रहीम से लड़ते रहते थे
राम रहीम का बस ध्येय था पढना
सब को पछाड़ के आगे ही बढ़ना
चक्रम घंचक्रम नालायक थे बड़े
नफरत पाते रहते अलग थलग पड़े
चक्रम घंचक्रम ने चाल एक चली
राम रहीम पे फेंकी जात की डली
मच गई चहूँ ओर यह कैसी खलबली
सब तरफ दुआओं की एक हवा चली
राम रहीम न एक पाठ सिखाया
ईद और दीप को फिर मिल के मनाया
दोस्ती दोनों की मिसाल बन गई
चक्रम बन्धुओं की खिली उड़ गई
आओ उठाएं हम भी यह कसम
भारतीय हम हम सब एक धर्म
दोस्तों तुम भी सुनाना ये सबको कहानी
राम रहीम की थी दोस्ती पुरानी.....
सदस्यता लें
संदेश (Atom)