बुधवार, 24 सितंबर 2014

बेगाना ना समझ


मुखड़ा क्यूँ फेरते हो मुखड़ा क्यूँ फेरते हो

इतने बुरे ना हम हैं
जीवन में कम ना गम हैं
ऐसे में तुम भी हमारा
दुखड़ा ना देखते हो

मुखड़ा क्यूँ फेरते हो मुखड़ा क्यूँ फेरते हो

तुम्हारा था हमको सहारा
अब कर गये क्यूँ किनारा
अपने हो फिर भी तुम
बेगाने से लगते हो

मुखड़ा क्यूँ फेरते हो मुखड़ा क्यूँ फेरते हो

साँसों में महके सदा तुम
कोयल से चहके सदा तुम
करके यूँ सन्नाटा
अब क्या तुम चाहते हो

मुखड़ा क्यूँ फेरते हो मुखड़ा क्यूँ फेरते हो

मुखड़ा क्यूँ फेरते हो मुखड़ा क्यूँ फेरते हो

गुरुवार, 18 सितंबर 2014

मरकर भी ना मरूँगा

आखरी साँस आने को है पर कोई अपना न आया
गुनाह इतने किये रहा उम्रभर अकेलेपन का साया

हर तत्व इस शरीर का अपने अपने में जा मिला
पर माटी को माटी ने अब तक ना था अपनाया

अहसास कुछ होने लगा माँ का दिल था दुखाया  
निर्जीव जीव पड़ा रहा बिन माता पिता का साया

अपने किये हर गुनाह की सजा को तैयार हूँ मै
मरकर भी ना मरूँगा बिन माँ की गोद का साया