बुधवार, 30 नवंबर 2011

ममता की मूरत

जग में सुन्दर ममता की मूरत
है अपनी माँ
घूम के देखि दुनिया सारी
माँ नहीं मिली वहां
कष्ट झेल कर, नौ नौ महीने
दुनिया हमें दिखाती
अपने खून को दूध बनाकर
छाती से है पिलाती
ऐसा दूध और ऐसी ममता
हमको मिले कहाँ
घूम के देखि दुनिया सारी
माँ नहीं मिली वहां

मंगलवार, 29 नवंबर 2011

मैं भूल गया

मुझे याद क्यूँ ना कुछ रहा
मैं भूल गया क्यूँ कल का सहा

पानी मे वो प्रतिबिम्ब था
प्रतिबिम्ब ने था मुझसे कहा
जो तुझमे है वो उड़ेल दे
हर्फों के सबको खेल दे
तेरी वेदना या चेतना
उसमे हो तेरा लिखा सना
जो पाया मैंने संचय किया
लिखने वो बैठा जो था सहा

पर हाय रे यह क्या हुआ
मैं भूल गया क्यूँ कल का सहा

एक बार फिर एक राह दिखी
मरू मैं बैठा लिखने अपनी लिखी
मैंने अपने को फिर छुआ
बचा कूचा फिर हर्फ़ हुआ
मरू की शांति संग थी
मेरी वो भ्रान्ति तंग थी
मै लिखता जाता हर कण में
वो छुपता जाता हर क्षण मे
मैं पुनः जो बैठा लिखने को

पर हाय रे यह क्या हुआ
मैं भूल गया क्यूँ कल का सहा

तरसता हूँ

बिन बंधे सफों सा
पड़ा हूँ सुनसान बस्ती में
समीर का हर झोंका
उड़ा जाता है कुछ सफे

तरसता हूँ एक हस्ती को
जो बांधे मुझे करीने से
या उड़ जाएगी मेरी हस्ती
इन सफाखोरों की बस्ती में

सोमवार, 28 नवंबर 2011

मिलने की चाह

आज दिन भर मुलाक़ात ना हो सकी अपनेआप से
सिवाय मेरे हर व्यक्ति मिला मुझ बड़े साहेब से

ढले हुए सूरज की शीतल रौशनी मै
मुस्कुराता मस्तीभरा चला
लिए मिलने की चाह अपनेआप से

परन्तु हर रोज की तरह
यादों ने छीन लिया
अकेलापन मुझसे
रह गई अधूरी चाह
मिलने की अपनेआप से

आज मिल ना सका
कोई गम नहीं
फिर किसी अच्छे दिन
लूँगा मिलने का appointment अपनेआप से

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

विरोध करूँगा

तुम कुछ भी कहो
मै विरोध करूँगा
कारण कुछ नही
विरोधियों संग हूँ
जानता हूँ भलाई है
हमे तो कहना बुराई है
राजनीति में जब आया
पहला पाठ यही सिखाया
अगर तुम्हारी हाँ से मेरी हाँ मिली
दल विरोध की समझो सजा मिली

तुम मुफ्त में अन्न बांटोगे
सड़ा बांटते कह न खाने का अनुरोध करूँगा
तुम नंगे का तन ढाकोगे
मुर्दों से उतारा नंगे रह ठिरो अनुरोध करूँगा
तुम चाह कर भी कुछ न कर पाओ
बस इस बात की बाट देखूंगा
कारण कुछ नही
विरोधियों संग हूँ
जानता हूँ भलाई है
हमे तो कहना बुराई है

मै वो नही जो कुर्सी माँगू
अपना अस्तित्व खूंटा टागुं
मेरा चरित्र विरोधी है
मुझे खुल कर विरोध करना है
अगर भूखा मरुँ मेरा पेट न भरना
वरना तुम उसमे भी करोगे विरोधी सामना
कारण कुछ नही
विरोधियों संग हूँ
जानता हूँ भलाई है
हमे तो कहना बुराई है

देश प्रेम में जीता हूँ
दुश्मनों के छक्के तुमने छुड़ाए पता है
ये अंदर की बात है हम दिल से साथ हैं
पर जनता बेचारी को कुछ न ज्ञात है
मुझे कहना ही है तुम समय पर न चेते
दुश्मनों से सम्बन्ध रखते तुम्हारे चहेते
कारण कुछ नही
विरोधियों संग हूँ
जानता हूँ भलाई है
हमे तो कहना बुराई है

तुम ये मत समझना मेरा दल है
बस विरोध करना ही मेरा बल है
कोई आए कोई जाए
चाहे कोई दल सत्ता पाए
मै हर समय विद्यमान रहूँगा
हर समय हर बात का विरोध करूँगा
कारण कुछ नही
विरोधियों संग हूँ
जानता हूँ भलाई है
हमे तो कहना बुराई है 
   

बुधवार, 23 नवंबर 2011

करो नेत्रदान

सरपट बस दौड़ती जाती थी
यात्रियों को नींदिया आती थी
पर एक बच्चा माँ संग बैठा
प्रश्नों की झड़ी लगाता था
सहयात्री कच्ची नींद से उठ
गुस्से में घूर उसे खाता था
माँ चमक में न दीखता सूरज
रात में क्यूँ चंदा दीखता है
आदमी औरत अलग अलग
क्यूँ पेड़ पीछे जाता दीखता है
ये पहाड़ क्यूँ पीछे जाते हैं
बादल संग में क्यूँ आते हैं
बच्चे के प्रश्नों को सुन कर
माँ आँखे भर भर लाती थी
मंदबुद्धि का पक्का है इलाज
बोला क्यूँ आँख भर लाती हो
माँ बोली ये नहीं है मंदबुद्धि
कुशाग्र पुत्र था जन्म से अँधा
अभी इलाज करा पाए हैं नैन
पहली बार देखता गौरखधंदा
तनिक भैया तुम दो ध्यान
दिल में ठानो करो नेत्रदान          

मंगलवार, 22 नवंबर 2011

दोनों ओर खड़े

प्रिय उस पार तुम गाड़ी में
इस पार हमारे नैन खड़े
उस पार है सामान बंधा
इस पार हमारे नैन थमे
उस पार बस तुम चलने को
इस पार सोच हैं पाँव जमे
गठबंधन हो जब ढीले पड़े
रिश्तों की महत्वता जाती है
बीच पड़ती बढती है खाई
जिसके तुम हम दोनों ओर खड़े

सोमवार, 21 नवंबर 2011

झूठ का पर्दा

श्रद्धा सुमन चढाओ मुझ पर
कोई वन्दना गाओ मुझ पर
बड़ा बनने की चाह जगी है
चरण छू घमंड लाओ मुझ पर

मै नेता से न छोटा दीखता हूँ
कर्मो में न सम खोटा दीखता हूँ
जब वो पा सकता है पूजन तुमसे
वही श्रद्धा प्रेम लुटाओ मुझ पर

कर की करके चोरी जब धन्ना
विराजा जाता मुखिया सा अन्ना
बड़े बड़े चरणों में आते उसके
मुझको चिढ़ा हंसते हैं मुझ पर

पढ़ा लटक लटक कर बामुशकिल
कारण गुरु दक्षिणा न पाई मिल
पर सच बंद कमरे छुपा ही रहा
कोई झूठ का पर्दा चढाओ मुझ पर

बंद कमरे में मुझको तुम छेतो
चाहे कूड़ा कटका मुझ पर लपेटो  
पर एक भरे भवन चरणों में मेरे
तुम शीश झुका बहकाओ मुझ पर

आज मै जन्मा जिन्होंने कोसता हूँ
शिक्षा क्यूँ मानी पड़ा ये सोचता हूँ
उनको ये क्यूँ तब पता रहा नही था
सच सिखा जग हंसा गये वो मुझ पर 

आडम्बर में जीना अब हो चला ज़रूरी
झूठी बातें झूठा जीना बेहद है मजबूरी 
सच्चा नही तुम जैसा ही झूठा हूँ मै
पापी क्यूँ बनते उठा पाषाण अपने पर 
             

शनिवार, 19 नवंबर 2011

रिश्ता जोड़ गये

जब एक एक कर सब छोड़ गये
एकांकी कर मुख सब मोड़ गये
तब भावों ने आ मुझे संभाला है
पृष्ठों पर उमड़ विचार निकला है

सब भीतर ही था छुपा हुआ
पर भौतिकवाद मुझे घेरे था
अभिव्यक्ति से व्यक्त हुआ
क्यूँ नैतिकता में घिरा रहा

सब विमुख हो, सम्मुख कर
धकेल साहित्यिक दहलीज पर
मुझे कहाँ अकेला छोड़ गये
मुझे मेरे ही भीतर जोड़ गये

मुझे कलम दवात हाथ थमा
भाव विचार मेरे माथ जमा
साहित्य से रिश्ता जोड़ गये
जब एक एक कर सब छोड़ गये


शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

जीवंत जीवन

माटी गूँथ आकार मिला
न जीने को संसार मिला
था नाम दीया दीया मुझे
व्यर्थ था पड़ा यूँ बुझे बुझे
तभी बाती बतियाने आई
चिंगारी संग तेल सलाई
मुझमे संगम होने लगा
अंधकार में प्रकाश जगा
स्वयं जल जो प्रकाश बहे
जीवंत ही वो जीवन रहे 

 

शनिवार, 12 नवंबर 2011

हम नौकर उनके

माँ सब कहते हम नौकर उनके
हम पलते है खाकर टुकड़े उनके
माँ तू ही सारा दिन लगी यूँ रहती
दर्द बदन अपने हर अंग में सहती
मुझे खेलता देख, देख मुख उनका 
क्यूँ हर क्षण चढ़ा चढ़ा सा होता है
माँ मुझे बता ये नौकर क्या होता है

हम मेहनत कर तब कुछ कमा पाते 
वो घर बैठे बतियाते फिर भी कमाते
ऐसे कौन से काम हैं जो हमे न आते
कर वो धन्ना सेठ हम नौकर कहाते
तू कहे  मेहनत की रोटी अच्छी होती
तेरी मेहनत देख सेठ खुश न होता है
माँ मुझे बता ये नौकर क्या होता है

काका सर पर पत्थर रख शरीर खोते
उनकी मेहनत से ही महल सरीखे होते
पर बनने पर उनमे न वो जा सकतें हैं
एक निवाला पाने की वहीं राह जोतें हैं
ताज शाहजहाँ ने बनवाया सब जाने हैं
पर मजदूर बना ताज क्यूँ हक खोता है
माँ मुझे बता ये नौकर क्या होता है


छोटू भाई बर्तन घसता पानी भरता
दूर से ही देख मदरसा आहें है भरता
गाली ठोकर खाकर कभी पेट भरता
हर मौसम वस्त्र उसका फटा ही होता  
झूठन उसका है एक चर्चित निवाला
भाई हंस कर कैसे सारे ग़म सहता है
माँ मुझे बता ये नौकर क्या होता है 
   
छोटू रामू पप्पू कालू तम्बी ओये अबे
रानी काकी बुढिया कल्लो अरी मरी मरे
इन नामो संग क्या अपना रिश्ता पुराना
जहाँ सुने ये नाम समझो वो नौकर जाना
माँ काहे तू बुत बनी सब सुनती जाती है
कुछ तो कह मन मेरा विचलित होता है
माँ मुझे बता ये नौकर क्या होता है