सोमवार, 14 नवंबर 2016

माँ

जो चाहा था वो पाया था
मेरे सर माँ का साया था

मै जब किसी शुभ कार्य हेतु घर से जाता था
माँ का हाथ बिन भूले दही शक्कर खिलाता था

आज मेरी गलतिओं पर कोई, डाँटने वाला नहीं है
पर गलती नहीं करता क्योंकी माँ अब भी यहीं है

जब भी नाकामी का अहसास होता है
माँ के आँचल का सर पर आभास होता है

भगवान् क्षमा मांगता हूँ
आज भी तेरा दिया जला नही पाया
माँ को तो तूने बुला लिया

पर मै उसे अब भी भुला नही पाया

1 टिप्पणी:

रेणु ने कहा…

माँ को समर्पित अत्यंत सरल भाव उतने ही गहरे भी | राजीव जी-- माँ की महिमा लिखने मेंकोई कलम समर्थ नहीं पर बहुत अच्छा लिखा आपने | सस्नेह शुभकामनायें |