बापू मुझे बस कवि बना दे
तोड़ मोड़ जोडू क़ायदा सीखा दे
अनभिज्ञ जहान से बचपन था
देख लेख लिखने को मन था
मुठ्ठी भर शब्दों का जोड़
देख
दर्द पुत्रमोह उमडाया था
नग्न फाके समान थे कवि
फटी धोती हाड़ दिखाया था
आज देख कवि रेलम पेल
जैसे हो गेंद बल्ले का मेल
ईस युग में बस यह दोनों
अनगिन पैसा खूब कमाते हैं
सामाजिक पीड़ा तकनिकी क्रीडा
यह दोनों चाहे जाने ना जाने
पर धोती छोड़ कवि धर्म तोड़
थेले भर भर पैसा लाते हैं
भड़कते वस्त्र दिला छवि बना
दे
बापू मुझे बस कवि बना दे
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