रविवार, 12 जनवरी 2014

ताबूत में ओढ़े कफ़न

ताबूत से पहले बुत
लिये चला चलन
बुत खड़ा निहारे
बुत बुत का काटे कफन
बुत तराश धरा से
लेकर उसके संचयन
यूँ चलावे हाथ
ज्यूँ बुत बोले वचन
प्राण संग बुत बुत रहे
जगा ताबूत में ओढ़े कफ़न 

बुधवार, 8 जनवरी 2014

अंतिम हंसी

मुझको न समझाया किसी ने ना ही था बतलाया
चढा मै घोड़ी अंतिम हंसी संग बीबी रोती लाया

रास्ते भर सोचता आया संगनी क्यूँ थी रोती
सबको गले लगाती चलती मुझे देख चुप होती

पूछा सबसे है पहली शादी वजह मुझे बतलाओ
सबने दी सांत्वना कहा समय पर जग जायो

धीरे धीरे समय चला समझ मुझे सब आया
स्वंम मारने कुलाह्डी पर पैर था घर मै लाया

शेर सी दहाड़ अब मेरी म्याऊं म्याऊं ही होती
पूंछ ना थी पर जब घर जाता पूंछ दबी होती

चारों धाम लगती बीबी ना चाहते हँसते रहते
अपनों ने था दिया धोखा अंजाम हम सहते

सब ने तब समझाया हमको ये जीवन पहेली
सर ना उठाना सामने बस समझो उसे सहेली

स्वर्ग नरक होते न होते बात कभी ना करना
कर्मो का फल हर कोई पाता सर माथे धरना     

रविवार, 5 जनवरी 2014

चंद विचार

बहता पानी और नए नए विचार स्वास्थ्य और समाज दोनों के लिए लाभदायक है ..........

कुछ पाना है तो जो हाथ में पकडे हो उसे छोड़ो .....

जीवन में नियम उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितना नदी को नदी कहलाने में दो किनारे ...........

दुर्बल मानसिकता वाला व्यक्ति सबसे अधिक शारीरिक बल रखने वाले व्यक्ति से अधिक खतरनाक है ......

नारी नारी के शोषण की अग्रणी है ........

दुःख का कारण दुःख नहीं सुख की आशा है ...........

जब चाह थी राहें न मिली, अब राह हैं , हम चलने के काबिल नहीं ........... 

शनिवार, 4 जनवरी 2014

मेरी भौर हो गयी


देखो मेरी भौर हो गयी
 
एक डाली पर चिडिया चहके
दिवार सहारे तुम

ना चहकना वो भूलती
ना ही चहकना तुम

उसके सुर
या तुम्हारे सुर
ना कुछ अंतर विशेष है
 
बस तुम दोनों की चहक
मेरा हर दिवस में प्रवेश है

 मौसम बांध सके ना दोनों
ना दोनों की मीठी बोली

 उठ जा अब न तोड़ चारपाई 
देख धूप चहुँ ओर हो गई

देखो मेरी भौर हो गयी

 

शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

छोटे से घरोंदे, उन्मुक्त परिंदे

एक ख्वाब सा देखा था छोटे से घरोंदे का
जीवन जीता जिसमे उन्मुक्त परिंदे सा

जहान मुझको नाही जाने ना मै जहान को जानू
तुमको ही देखू हर पल अपना जहान मै मानू
मौसम सिमटते जायें तुमको यूँ अंग लगाएं
नशा ऐसा छाए मुझ पर बस तेरे होने का    
एक ख्वाब सा देखा था छोटे से घरोंदे का

एक ख्वाब सा देखा था छोटे से घरोंदे का
जीवन जीता जिसमे उन्मुक्त परिंदे सा

हुस्न तेरा बस यूँ दमके हूरें भी उतर आयें
खुले गेसू छुए कंधा सागर भी मचल जाये    
चेहरे पर तेरे शिकवा ना कोई शिकन तक हो
ढूंढे भी ना मिले हम लुत्फ़ अपने खोने का
एक ख्वाब सा देखा था छोटे से घरोंदे का

एक ख्वाब सा देखा था छोटे से घरोंदे का
जीवन जीता जिसमे उन्मुक्त परिंदे सा