बुधवार, 29 दिसंबर 2010

छाता है पाता है

आओ एक दुसाहस करे
लकीर का फकीर न बन
ढले सूरज को कर नमन
आओ पहले ये साहस करें

जिसने जल जल पुरे दिन
रास्ता साफ़ कर दिखाया
हमने उसे तनिक न कहा
उसने अपना कर्तव्य निभाया

उसकी निश्चितता तो देखो
बिन कहे रोज वो आता है
स्वार्थ भाव में सुबह पुजता
सांझ अकेला रह जाता है

एक सत्य है यही धरा का
जो छाता है पाता है सदा
ढले हुए या जर्जर हो पड़े
समय आए जाता है सदा

आओ ढले को भी अपनाएं
अहसानों को ना हम भुलाएँ
ढलना एक दिन सबको है
उदय और अस्त सबको है

आओ एक बार प्रयास करें
ढले भी पूजें ना उपहास करें
सृष्टि को हो गर्व पाल हमे
ऐसा पुत्र होने का साहस करें 

शनिवार, 25 दिसंबर 2010

उड़ने वालों सुनो

आकाश पर उड़ने वालों सुनो
तुमेह  धरती का है ये कहना
ऊँचा उड़ो चाहे तुम नभ छुलो
पर धरती पर तुम्हे है रहना

नभ पाने के तुम स्वप्न लिए
जीवन का चौथा हिस्सा जिए
जो मिला था उसकी बेकद्री
राहें जो चुनी सारी दर्द भरी
बिन पंख तुने  उड़ना चाहा
कटा सा तू  धरा पर आया
इसलिए तो कहता हूँ ये मै
आकाश पर उड़ने वालों सुनो


जागे हो या तुम सोये हुए
स्वप्नों में रहे सदा खोये हुए
मर्ग वाली तर्ष्णा सम्भाली थी
सच वाली जगह सब खाली थी
मुट्ठी बंद पर क्या मांगते तुम
मुट्ठी खोलो तब तुम पाओगे
इसलिए तो कहता हूँ ये मै
आकाश पर उड़ने वालों सुनो


हर रिश्ता है तुमेह लुभाने को
जीवन में कुछ समय बिताने को
पड़ाव आते ही  उतरते जायेंगे
संग तेरे कभी भी ना आयेंगे
फिर क्यूँ तू उड़ता रहता है
क्यूँ सच को ना तू सहता है
इसलिए तो कहता हूँ ये मै
आकाश पर उड़ने वालों सुनो

आकाश धरा का प्रेम है ये
वो देता धरा को जीवन भर
तू देख वो दोनों दूर सदा
रहते संग ज्यूँ ना हो जुदा
जो छोड़ धरा को नभ को चला
नभ ने उसे धरती पर ही मला     
इसलिए तो कहता हूँ ये मै
आकाश पर उड़ने वालों सुनो

सोमवार, 20 दिसंबर 2010

भूख

उसको जो लगी भूख तो वो काम को चला गया
मुझको जो लगी भूख तो मै व्योम में समा गया

क्या उसकी भूख और मेरी भूख दोनों में अंतर है
या उसकी भूख और मेरी भूख दोनों समानांतर है

पेट और पेट तले की भूख संग जो चला चला गया
भूख जो उपर हो पेट से तृप्त, मुक्त हो चला गया

भूख की भूख भक्षक बनी जग उसी में निगला गया         
सिर्फ यही सोच को लिए मै भीतर ही विचला गया

उसको जो लगी भूख तो वो काम को चला गया
मुझको जो लगी भूख तो मै व्योम में समा गया

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

माटी मिला

दुनिया से कूच की चाह ने उनके हाथ को होठों पर ला दिया
प्यार जिन होठों से निकलना चाहता था उनपर जमा गया
वाह बनाने वाले तुने किस मिटटी से बना कर सजाया इसे
ना जीता है माटी मिला और ना मरने पर माटी मिलता है  

शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

ना चाहूँ

अब और ना चाहूँ मै तुझसे
जो दिया मै उसे सम्भाले हूँ

नन्हे हाथों संग खेल कूद 
घुटनों चलता माटी मलता 
अपने इन पैरों के होते भी
बचपन में चल ना पाता था
तब तू ही रूप बदल आया 
तुने माँ बन मुझे चलाया था
अब तू ही बता मै क्या चाहूँ............

कैसे दुनिया में जीवन जियें
पग पग पर ठोकर ना खाएं
तुने हर बात का ध्यान धरा
हमे कभी कोई दुःख ना पायें
हर पग पर तू था संग मेरे
तुने पिता का रूप संभाला था
अब तू ही बता मै क्या चाहूँ ...........

किससे कैसे हम बात करें
हम बड़ों को कैसे माथ धरें
स्वभाव हमारा हो कैसा
जग में हम कैसे नाम करें
हमे उस सांचे में ढालने को
तुने गुरु का रूप संभाला था
अब तू ही बता मै क्या चाहूँ..............

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

शान्ति

मन क्यों उदास है
ऐसा क्या पाया उसने
जो ना मेरे पास है

विलासता मेरे सम्मुख
धन भरा अपरम्पार है
आम सोच से परे
फैला ये व्यापार है

ढूँढता फिरे मन और किसे
घूम घूम आ मस्तक घिसे

वो कहे सब है पर वो नही
बिना पाए जीवन निराश है

इस पहेली से फिरा मै जूझता
रहा एकांकी मै सभी से पूछता
पूर्ण सुख, क्या ना मेरे पास है
सच है मुझे शान्ति की तलाश है

बुधवार, 15 दिसंबर 2010

चेतना

वेदना की चेतना को भेदना
लक्ष्य है जियूं बिन संवेदना
रिश्तों की लम्बी लड़ी संग
जीवन पर हो कभी खेदना
पास रहूँ पर कुछ तो दुरी हो
दूसरों का कांधा ना धुरी हो
सागर संग पांवू गहराइयाँ
जहाँ छपूँ वहां चाहूँ हो रेतना
कोमल हो वाणी इस ह्रदय से
जो बांधे समस्त जग को कसे
एक जग साथ पग मिलके बढ़ें
चाहूँ यही सूत्र करे कभी भेदना                    
 
 

मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

इश्के दरिया

प्याला भरा है  सामने, यारों आओ अंजाम दो
राजीव इश्के दरिया ये चूमो डुबो और जान दो

वो जिनसे सब मिलने को तरसते हैं
हम हैं जो उनकी आँखों में बसते हैं