कलम कवि की
कलम कवि की
शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018
कसक रह गई
कुछ भी तो ना चाहा पर कसक एक रह गई बाकी
मुहाफ़िज़ समझा जिसे विरोधियों का सरदार निकला
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