सोमवार, 14 नवंबर 2016

माँ

जो चाहा था वो पाया था
मेरे सर माँ का साया था

मै जब किसी शुभ कार्य हेतु घर से जाता था
माँ का हाथ बिन भूले दही शक्कर खिलाता था

आज मेरी गलतिओं पर कोई, डाँटने वाला नहीं है
पर गलती नहीं करता क्योंकी माँ अब भी यहीं है

जब भी नाकामी का अहसास होता है
माँ के आँचल का सर पर आभास होता है

भगवान् क्षमा मांगता हूँ
आज भी तेरा दिया जला नही पाया
माँ को तो तूने बुला लिया

पर मै उसे अब भी भुला नही पाया

शुक्रवार, 11 नवंबर 2016

पग कहाँ धरें

आने पर ना बस था कोई
तब जाने की क्या बात करें
तू है मेरी कथन यह तेरा
है धरा कहाँ पग कहाँ धरें

जहाँ भी जाते इस जहान में
कण रण क्षण सब उसका है
कहते हैं हम धरा के प्राणी
पर तन मन धन उसका है
यह तू बता हम कहाँ मरें
है धरा कहाँ पग कहाँ धरें

आयें है तो पायेंगे क्या
खेत तेरा खलियान तेरा
लगा हँगा गंजे धर कंघा
रीती झोली, हम कहाँ भरें
माटी माँ अब बुला रही, पर     

है धरा कहाँ पग कहाँ धरें

रविवार, 6 नवंबर 2016

बस कवि बना दे

बापू मुझे बस कवि बना दे
तोड़ मोड़ जोडू क़ायदा सीखा दे

अनभिज्ञ जहान से बचपन था
देख लेख लिखने को मन था

मुठ्ठी भर शब्दों का जोड़ देख
दर्द पुत्रमोह उमडाया था

नग्न फाके समान थे कवि
फटी धोती हाड़ दिखाया था   

आज देख कवि रेलम पेल
जैसे हो गेंद बल्ले का मेल

ईस युग में बस यह दोनों
अनगिन पैसा खूब कमाते हैं

सामाजिक पीड़ा तकनिकी क्रीडा
यह दोनों चाहे जाने ना जाने

पर धोती छोड़ कवि धर्म तोड़
थेले भर भर पैसा लाते हैं

भड़कते वस्त्र दिला छवि बना दे  

बापू मुझे बस कवि बना दे

विचार

पर्वत पर कहाँ फूल खिलें
कहाँ वृक्ष बढे चट्टानों में
आज जिंदगी बोल रही

शांत हुए शमशानों में 

शुक्रवार, 4 नवंबर 2016

बाप बिना कोई कैसे आये

हंसी संजोये होठों पर वह
रखती थी आँखों मे पानी
मन मे सपने लिए अनोखे
पाले थी वह पेट मे रानी

पुरुष ने पुरुषार्थ दिखाया
कहकर दबदबा बनाया
जने  जो तेरी कोख़ जनियो
दुनिया जाने वंश बढ़ाया
कुछ न बोली कुछ न बोली
मन रोता पर गर्दन हामी 

बादल ने ज्यूँ ली अँगड़ाई
समय बीतता बद्री छाई
लाडो पर ज्यूँ धरी हथेली
पुरुष क्यों जन्मा हमने बोली
सुखी आँखें करें थी बातें
माँ बेटी थी दर्द की हाणी

लाडो मै शर्मिंदा क्षमा कर
अपनी जननी माई को
दोष यदि कोई मेरा बच्ची
क्षमा पुरुष की जाई को
तभी हुई एक अजब कहानी
पेट में बोले थी वो रानी

माँ थोड़ी तू हिम्मत रख
मै आती तू झपक पलक
फिर तू देखेगी ये बेटी
प्रेम प्यार से हरेगी हेठी     
माँ देख मेरे भाई को
उसकी सूनी कलाई को
भाई भी मुझको है चाहता  
छुप छुप आँख में पानी लाता
तू कहती बापू न चाहे
बाप बिना कोई कैसे आये
दादी बुआ तुझे जो  कहती
अंदर मै सब सुनती रहती
तू उनको क्यूँ न समझाती
 उनकी भी है नार्री जाती
जो वो दुनिया में न होती
वंश के बीज किस में बोती
दादा आया दादी लाया
बापू आया तुझे था लाया
काहे ये समझे ना कोई
हमने ही ये वंश बढाया
क्यूँ सीता चली थी अग्नि पर
क्यूँ द्रोपती पर पांचो का साया
गांधारी ने क्यूँ पट्टी बाँधी
क्यूँ सती का धर्म था छाया
हर प्रश्न का उत्तर तू पाए
पुरुष नहीं नारी से आए
समय हुआ समय वो आया
नारी नारी भाए न साया
चल खड़ी होजा रे अब तू
बजा बिगुल उद्घोषणा कर तू
धरती करे बस वो ही पैदा
जिसका बीज उसमे जो बोवे
गर नारी अब बाँझ हो गई
समस्त धरा धराशाही होवे
रे समाज तू अब सुधर जा
आइना देख देख तू अपने
मुख से मुख पर थुँकवायेगा
दो जन एक जैसे जब मिलकर
कुछ न पैदा कर पावेगा
भूमि न होएगी तुम संग
फसल तू कहाँ लगाएगा
कामी भूल रिश्ते सब अपने  
नज़र नज़र में गिर जायेंगे
पछ्तावे से होगा नहीं कुछ
जब रुंड मुंड लह्लाहायेगे

जब रुंड मुंड लह्लाहायेगे