शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

नई सोच

आज फिर सँवारने आया तुम्हारे सामने
गर्त की परते जमी बरसों तुम्हारे आंगने 
बुहारी पकड़े हाथ बुहारते हर और गार 
निश्चय मेरा ही सफल बढ़े हाथ थामने

जब तलक न होंगी परतें धुल की विलय 
जब तलक न होंगे झरोंखे हर घर के खुले 
तुम जो चाहो भी बदलना बदल सकते नही
हर ओर छाएगी उदासी मन में होगी कलह      

आज जब तितलियों ने लगाया अपना फेरा 
खुशिओं की दौलत बिखर गई अपने डेरा 
किलकारी से गूंजेगा जब अपना ये आशियाँ 
एक नई सोच होगी, खुशबु से महकेगा घेरा 

रूठ गया था बहुत दिनों बात लौटेगा बसंत 
शांत चर्र पर्र, बहुत दिनों बात चहकेगी चिरयं
ओ ख़ुशी दूर न जाना, मेरी बगिया हरी है 
इसमे आकर चहकना और खिलना खिलाना       

मंगलवार, 27 सितंबर 2011

झूठ के डर से

सच एक ऐसी चीज है
जो सब को नसीब है
लकिन आज के युग मे
कुछ की खो गई
कुछ रख कर भूल गए
कुछ के पास है
कुछ सत्यवादी हो गए

मै भी
सच को पूजता हूँ
हमेशा सम्भाल कर रखता हूँ
क्यूंकि उसका दुश्मन झूठ
हमेशा पिलाता है मुझे कड़वे घूँट
जब भी सच को सामने लाना चाहता हूँ
झूठ मुझे सताता है
अपना साम्राज्य याद दिलाता है
मुझसे कहता है
अरे मुर्ख
क्यूँ समय बर्बाद करता है
सच को याद करता है
मुझसे मांग जो मांगना है
किसको उल्टा किसको सीधा टांगना है

याद रख आज मेरा साम्राज्य है
और तुझे
किसी और का नहीं
सिर्फ मेरा हुकुम मानना है

अरे पापी
तुने एक बार हाथ बढाया था
मुझको अपनाया था
तुने सुना है दोस्त दोस्त के काम आता है
तू मुझे छोड़ के जाता है
मुझे देख
मै आज भी तेरे साथ हूँ था रहूँगा
तू ग़लत काम करयो
मै बचाता रहूँगा
अगर फिर भी
सच अपनाने की ठानी
छोड़ी न अपनी मनमानी
तो याद रख
आज तक तो दोस्ती देखी है
फिर पड़ेगी दुश्मनी निभानी
न पिटता हुआ पिटवा दूंगा
सरे आम मरवा दूंगा
दफ्तर में कलह
घर से निकलवा दूंगा
तू बड़ा मेरे बल पर छाती ताने घूमता है
अरे तन के सारे कपड़े उतरवा दूंगा
प्यार से कह रहा हूँ
दोस्त मान जा
सच से कुछ नहीं होने वाला
झूठ को पहचान जा

जब भी मेरे सामने ये घटना आती है
झूठ की याद सताती है
क्यूंकि जब भी सच बोला
दुख ही झेला

चुपचाप बताता हूँ
सच को भी पूजना चाहता हूँ
लेकिन
झूठ के डर से
तिजोरी में रखता हूँ
सामने लाने में घबराता हूँ

गुरुवार, 8 सितंबर 2011

फुलवारी

गंगा नहाये पाप धुले, साबुन धोये मैल |
ऐसो कलंक ना पाइओ, ना छुटे कहूँ गैल ||

मौत आ जाये तो मैं जिंदगी पाऊं |
मरने की चाहत मैं जिए चला जाऊं ||

मन को भँवरा बना के काहे ढूंढे फूल|
खुशबु तेरे तन छुपे काहे फांके चूल ||

मन की नाव डोली फिरे, छोर नज़र ना आये |
राजीव छोर भीतर छिपा काहे तू ढुढन जाये ||

नारी को ना समझो तुम नारी है कितनी कमज़ोर |
नारी से ही नर जन्मता नर की शक्ति उसमे जोड़ ||

दर्द का मर्म ना जाने कोई हर ज़ख्म से इसका रिश्ता है |
कभी हलक से कभी पलक से पल पल पल पल रिसता है ||

मूक रहो तो जग समझे कितना तुमको ज्ञान |
राजीव मुख खुलते ही खुले अज्ञानी को ज्ञान ||

मुस्कराहट तेरा क्या कहना |
स्वर्ग का एहसास तेरा बहना ||

धरती को तुम जितना खोदो जितना छेदों
कुछ ना कुछ ये देती है |
राजीव जाने का समय जब आये तो देखो
बाँहों में  भर लेती है ||

सुई से तलवार तक क्यूँ कोई जान ना पाए |
शब्दों में है क्या छुपा जो घाव गंभीर बनाये||

किती मानव भूल करे जोहे मौत की बात
मौत तो वाके संग रहे रूप बदल कर ठाट |
रूप बदल कर ठाट कबहू झटक दबोचे तोकू
राजीव समझ यह सच अगर समझे तोकू ||

मेरी (बूंद) क्या बिसात जो सागर से मुकाबला करूँ |
पर सागर रखे ज्ञात मुझ बूंद से उसका अस्तित्व है ||

कैसा ये मोड़ आया
जिंदगी हो गई खड़ी
दूर होती जा रही
रिश्ते की हर लड़ी

मौत जिंदगी को तू कब तक यूँ  ढोना चाहेगी
समय समय पर उसको छध्म बाग़ दिखाएगी
बेचारी जिंदगी तेरे चुंगल से कब छुट पायेगी
राजीव एक दिन ये स्वयं ही मौत बन जायगी

छदम भेष धारण किये, जन्म हर पल हमे ललचाये |
कभी ये जीवन कभी ये रिश्ते जोडन को मचलाए||

चक्षु घुमे चहुँ ओर देखे दुनिया सारी|
क्यूँ ना देखे तन जामे चक्षु उभारी||

राजीव देखे जग को जग कबहू अपना होई |
एक बार कर आँख बंद जग एक सपना होई ||

महक महक की सुनो कोई ज़ुबां नहीं होती
महक महकेगी कहाँ यह कभी नहीं कहती

थुल थुल बदन को देख कर भ्रम ताक़त का होय
राजीव मांस की यह गाड़ी एक पल में माटी होय

प्रेम तुमको कब कहे करो तुम उनका बखान
  जो बखान करो प्रेम का वो हो व्यापार समान