गुरुवार, 24 नवंबर 2011

विरोध करूँगा

तुम कुछ भी कहो
मै विरोध करूँगा
कारण कुछ नही
विरोधियों संग हूँ
जानता हूँ भलाई है
हमे तो कहना बुराई है
राजनीति में जब आया
पहला पाठ यही सिखाया
अगर तुम्हारी हाँ से मेरी हाँ मिली
दल विरोध की समझो सजा मिली

तुम मुफ्त में अन्न बांटोगे
सड़ा बांटते कह न खाने का अनुरोध करूँगा
तुम नंगे का तन ढाकोगे
मुर्दों से उतारा नंगे रह ठिरो अनुरोध करूँगा
तुम चाह कर भी कुछ न कर पाओ
बस इस बात की बाट देखूंगा
कारण कुछ नही
विरोधियों संग हूँ
जानता हूँ भलाई है
हमे तो कहना बुराई है

मै वो नही जो कुर्सी माँगू
अपना अस्तित्व खूंटा टागुं
मेरा चरित्र विरोधी है
मुझे खुल कर विरोध करना है
अगर भूखा मरुँ मेरा पेट न भरना
वरना तुम उसमे भी करोगे विरोधी सामना
कारण कुछ नही
विरोधियों संग हूँ
जानता हूँ भलाई है
हमे तो कहना बुराई है

देश प्रेम में जीता हूँ
दुश्मनों के छक्के तुमने छुड़ाए पता है
ये अंदर की बात है हम दिल से साथ हैं
पर जनता बेचारी को कुछ न ज्ञात है
मुझे कहना ही है तुम समय पर न चेते
दुश्मनों से सम्बन्ध रखते तुम्हारे चहेते
कारण कुछ नही
विरोधियों संग हूँ
जानता हूँ भलाई है
हमे तो कहना बुराई है

तुम ये मत समझना मेरा दल है
बस विरोध करना ही मेरा बल है
कोई आए कोई जाए
चाहे कोई दल सत्ता पाए
मै हर समय विद्यमान रहूँगा
हर समय हर बात का विरोध करूँगा
कारण कुछ नही
विरोधियों संग हूँ
जानता हूँ भलाई है
हमे तो कहना बुराई है 
   

4 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

बेहतरीन व्यंग सामयिक रचना के लिए बधाई

Sam ने कहा…

another masterstroke !!!!
great one..

Udan Tashtari ने कहा…

सटीक रचना...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सटीक व्यंग, क्या करूँ, आदत से मजबूर।