मंगलवार, 26 जून 2012

भूल जायूं मुमकिन नहीं

तुमेह भूल जायूं ये मुमकिन नहीं है
हमे भूल जाओ  न इस पर यकीन है

वो तपती दोपहरी वो नीम की छाया
गुड्डे गुड़िया का ब्याह था रचाया
अपने खेल  में तुमेह ही था ब्याहा
आज खो गई मेरी गुड़िया कही है

यौवन की दहलीज पर चढ़ रहे थे
हाथ में हाथ थामे यूँ बढ़ रहे थे
संग देख कर यूँ नयन जल रहे थे
लगता था जैसे जन्नत यहीं है

तुम दूर हो मुझसे यह तो पता है
हो किसी और के मेरी क्या खता है
दिल ले गये संग में न मांगते हैं
पर ये क्यूँ कहते हो जीना यूँही है

खुदा से दुआ में ये अब मांगते हैं
ज़माने की खुशियाँ दामन भरा हो
गम का न कोई साया संग खड़ा हो
अश्कों वहाँ न जाना राजीव यहीं है


तुमेह भूल जायूं ये मुमकिन नहीं है
हमे भूल जाओ  न इस पर यकीन है


रविवार, 24 जून 2012

ज़ख्म

जिनसे हमे थी नफ़रत तुम्हारे वो मीत हुए
ज़ख्म जो दिये हैं तुमने हमारे वो गीत हुए

जब भी मिला है मौका ज़ख्मो को यूँ है छेडा
हर  रिस्ते ज़ख्म पर तुम  मुस्कान ही लिये

अपनी थी ये नादानी विश्वास तुम पर करके
नफ़रत भरी नजर की चाहत में यूँ जिये

एक वादा कर सको तो अहसान हो तुम्हारा
मोहबत अगर हो ऐसी न मोहबत उसे कहे

खुदा उनके गुनाह बक्शे मोहबत जो  यूँ करे
ऐसी मोहब्त राजीव  दुश्मन भी नही सहे

बुधवार, 13 जून 2012

लिखने वाले कहाँ गये

लिखते थे जो लेख ऐसे
लगे नया साहित्य जैसे
आज तरसती लेखनी है
वो लिखने वाले कहाँ गये

हर्फों ने जिनके वर्कों पर
समाज सजा बसाया था
पीड़ा दूजे की सहन कर
पीड़ित का दर्द बताया था
वो पीड़ित अब कहाँ गये

रस को मथ अपने भीतर
रसिक को स्वाद चखाते थे
जिस रस में वो थे  माहिर
बस वही रसपान कराते थे
स्वंम पेलू अब कहाँ गये

आज के तुम लिखने वाले
मुझको थामे लिखते जाते
मै चलती जाती तुम चाहते
हर्फों पर अश्रू  जमते जाते
हर्फों के अर्थ अब कहाँ गये

लिखते थे पर न दिखे कभी
जब दिखे तो नयन बहे वहीँ
वो दर्द संजोते थे या अपनाते
बस मै लेखनी ही जान सकी
अर्थों के अर्थ अब कहाँ गये

शनिवार, 9 जून 2012

जीवन मन्त्र

पाँच की है कैद, फँसा कब निकलेगा
पाँचों खड़े मुस्तैद, न कोई पिघलेगा
देंगे दुलार करेंगे प्यार, तू फँस जायेगा
याद रहेंगे ये ही, तू खुद को भुलायेगा
अंत समय जब आये, तो याद आएगा
जीवन जीया, कुछ न किया, पछतायेगा
पसीने संग खून बहाया, खूब कमाया
अंत में जब चला, तो खाली हाथ आया
समय नही है बहुत, अब भी तू चैत जा
क्यों आया तू जग में, सोचने बैठ जा
तेरे अपने न तुझे, अपने संग रखेंगे  
पंछी उड़, तेरा पिंजरा आग पे रखेंगे
उठ खड़ा हो, अब कब खोजने निकलेगा
पांचो को कर वश में, कैद से निकलेगा


बुधवार, 6 जून 2012

पंछी

तुने प्यार किया था हवाओं से
अब धोखा मिला तो कसूर क्या
क्यूँ दुखा रहा है दिल को अब
हवा ठहरी क्या कभी एक जगह

तुने नाव उतारी थी उस पानी में
तुझे घमंड था हाथ पतवार का
अब देख भंवर में फंसा है तू
तुझे पानी की मार का न पता 

तुझे तेरी वफ़ा पे तो नाज़ बहुत
तुने कभी किया न शिकवा गिला
आज जब वो चले तुझे छोड़ कर
तुने  उनकी जफा को वफ़ा कहा

उड़ते पंछी कब बंधे एक डाल से
क्यूँ डाल कहे वो थे बेवफ़ा
अब उड़ गये उन्हें उड़ने दो
तकदीर में था तेरी यही बदा   


सोमवार, 4 जून 2012

जिंदगी आती नहीं

तुमने आना बंद किया है जिंदगी आती नहीं
मौत जो थी महबूबा वो अब समझ पाती नहीं

तेरे नाम के सिवाय और कुछ भाये कहाँ
जानते हो तुम भी अब ये छोड़ हम जाएँ कहाँ
हैं तुम्हारे ही सहारे जिंदगी पायेंगे कहाँ
पा जाते हम भी किनारा छोड़ जो जाती नहीं

प्यार का सागर समझ कूद हम इसमें गये
भंवर जोहती बाट थी तब डूब हम इसमें गये
न इधर के न उधर के बाहर अब जायें कहाँ 
डूबने का डर न होता तुम जो ठुकराती नहीं

नयनो ने तुमको देखा देखते ही रह गये
ज्यूँ मरु में जल हो प्यासे होंठ कह गये
भीगना न था न भीगे वो सूखे सूखे रह गये
आज राजीव की  चाहत थोड़ी भी बाकि नहीं

शुक्रवार, 1 जून 2012

आज की कहानी

आज ये कहानी सुन लो, मेरी जुबानी सुन लो
नयनो को भर न लायें कसम ये हमारी तुम लो

कैसा रिश्ता कैसा नाता, भाग्य का इन्सान विधाता
देखो कैसे कर्म है उसके, छोटे छोटे धर्म है उसके
प्रेम से वो कोसों दूर, एक दूजे को रहा है घूर
उसकी छोटी सोच देखो, बढ़ते उसके खोट देखो
भाई को न भाई भाए, माँ बहिन भी संग न आये
मात पिता की कैसी पूजा, भाए उसको घर ही दूजा
कैसा समय का चक्र पलटा देवी घर की हो गई कुलटा
आज सावित्री ढूंढे न मिलती सीता की भी कमी खलती
राम खो गए बनवासों में इसा मोहम्मद न सांसो में
कैसी शिक्षा और परीक्षा भाई बनने की मिले है दिक्षा
परदेसी सर ताज धरा है देसी अपनी जेब भरा है
भ्रष्टाचारी गुण है अपना देश भी बेचें ये है सपना
राज करने की एक ही निति गद्दारी संग अपनी प्रीति
चाहे जो भी काम करा लो चाटुकारिता तुम अपनालो
क्ल्ल्दार का मोह बड़ा है चाहे लथपथ बाप पड़ा है
ऐसी है ये कहानी सुनलो बिकती भरी जवानी सुनलो

भगत बोस जो होते, गाँधी पटेल संग में रोते
हश्र अपना ये होना था, आज़ादी को क्यूँ रोना था
आज हम जहाँ में होते पोते पोती संग हम सोते
काहे रस्सी पर थे झूले, गोली खा जलाये चुलेहे
विदेशी अपने देश से भागे मार हमारे हम न जागे
काहे भूले वो दिन अपने पड़े थे उनके जूते चखने
हम गधे से आज खड़े हैं वो फिर हमारे घर पड़े हैं
अब के आये न निकलेंगे न गुरु से फूल मिलेंगे
परदेसी का नहीं भरोसा कब दे जाये प्यारा धोखा
पंछी उड़ किस डाल बैठे बहता पानी न है भरोसा
न्याय व्यवस्था चर चर करती, अर्थव्यस्था कभी भी मरती
डॉलर अब भी रूपये से भारी त्राहि त्राहि जनता सारी
नेता क्यूँ बंद देश हैं करते, अक्ल में ये क्यूँ न भरते
मर रहा है देश हमारा जिसका नेता है हत्यारा
संसद जाओ या न जाओ, खाओ चाहे जो तुम खाओ
हाथ जोड़ पाँव पकड़े, आओ अपना देश बचाओ
वरना कहानी बन जाओगे हर जुबान पर आओगे

गद्दारों की कहानी सुन लो, मेरी जुबानी सुन लो
नयनो को भर न लायें कसम ये हमारी तुम लो