मंगलवार, 26 नवंबर 2013

इश्के दरिया


साकी और मैखाना, एक जाम और पैमाना
ये साथी हैं जीने के बिन इनके मर जाना
दुनिया वालों सुन लो अफसाना ये दिल का
यार दिल में छुपा बैठा अब उसे बुलाना ना
इश्क में इस कदर डूबे ख़ामोशी का दरिया
गम हो उससे जुदा खुशियाँ तुम बरसाना

हर कुचे हर गली से जा पहुंचोगे उसके दर
पता तुमको हमको सबको है  ना बतलाना
जो मंजिल हमने चुनी कोई चुनके तो देखे
ये इश्के दरिया है बस तरना और मर जाना

रविवार, 24 नवंबर 2013

युग पुनः


कुछ मिले पेट में अगर तब ही  मैं गा पाता हूँ
बीते कलमकार पाते थे रीता मै रह जाता  हूँ
देसी कलम विदेशी लेखनी चलती दोनों सम
लिखा उनका गहरा जमता मेरा  समझें कम

शब्द वही उस युग के अर्थ ना उनसा पाते हैं
चले गये याद आवें मैं हूँ कौन यह पुछवाते हैं

बट वृक्ष युग बतलावें कलयुगी मुझसा देखें ना
आशिस दो राजीव को युग पुनः खेंच लाऊं हाँ

बुधवार, 20 नवंबर 2013

याद हो आया

आज इक बार फिर याद हो आया
नही किया जिसके लिए था आया

तेरा मेरा लगा रहा चलने तक
उसे ना तेरा ना मेरा ही पाया

आज सभी वो साथ दिख रहे
मीलों पीछे जिन्हें छोड़ आया

कश्ती में छेद पर सरपट दौड़ती
पानी का भेद समझ ना आया

तुम ही तुम मस्तिष्क पर जमे
तुम तुम हो चला समझ आया

वो अहसास जो लबालब भरे
देखो हाथ सब यहीं छोड़ आया

अंतिम अहसान बदले अहसास
चादर देखो पाँव निकल आया

आज इक बार फिर याद हो आया
नही किया जिसके लिए था आया

रविवार, 17 नवंबर 2013

मंजिल

आसमान संग चलता मेरे
धरती मुझे थकाती है 

पवन थपेड़े दे दे कर
सारे घाव सुखाती है

बदली बेसमय घिर कर
अंतर्मन मचलाती है 
अपना ना सब गैर यहाँ
चल मंजिल तुझे बुलाती है

बुधवार, 13 नवंबर 2013

गोट

समझना चाहा समझ ना सका
समय के स्वाभाव को
सब कुछ है पर मुझे जोत रहा
किसके वो अभाव को

खेल खेलता सदा जीतता
हर अपने वो दाव पर
मलहम तक ना मलने दे
हारे हमरे घाव पर

तृष्णा हमरी और भडकती
लगता उसकी दया हुई
हँसता हुआ वो चलता जाता
छोड़ खेलन गोट धरी हुई