बुधवार, 20 नवंबर 2013

याद हो आया

आज इक बार फिर याद हो आया
नही किया जिसके लिए था आया

तेरा मेरा लगा रहा चलने तक
उसे ना तेरा ना मेरा ही पाया

आज सभी वो साथ दिख रहे
मीलों पीछे जिन्हें छोड़ आया

कश्ती में छेद पर सरपट दौड़ती
पानी का भेद समझ ना आया

तुम ही तुम मस्तिष्क पर जमे
तुम तुम हो चला समझ आया

वो अहसास जो लबालब भरे
देखो हाथ सब यहीं छोड़ आया

अंतिम अहसान बदले अहसास
चादर देखो पाँव निकल आया

आज इक बार फिर याद हो आया
नही किया जिसके लिए था आया

कोई टिप्पणी नहीं: