गुरुवार, 26 अगस्त 2010

चमन

ना रोंदो चमन को
ये चमन हमारा है
हर जात का फूल
चमन को प्यारा है

फूलों को जिसने तोडा
शुलों ने ना है छोड़ा
ये फूल और शूल का
तो साथ ही न्यारा है 

मंगलवार, 24 अगस्त 2010

1

गर तुम न हंसोगे तो
दुनिया वीरान होगी
इस चमकते सूरज मे
एक ढलती शाम होगी

एक हल्की सी हंसी जो
आएगी तेरे लब पर
उस लब को चूम लूँगा
हर गम से मै झगड़ के
इस दिल की उस गली मे
फिर जश्ने शाम होगी
गर तुम न हंसोगे तो, दुनिया वीरान होगी 

देने को हर ख़ुशी मै 
घूमा फिरा था हर दम 
देखूं मै कैसे छाया 
चेहरे पे तेरे यूँ गम 
गम की ये छायी बस्ती 
कब कत्ल ए आम होगी 
गर तुम न हंसोगे तो, दुनिया वीरान होगी  

अपनी तो बस दुआ ये 
खिलती रहे हमेशा 
तुझको न ये पता हो 
गम नाम होता कैसा 
खुशिओं की बारिशें ही
तुझ पर निसार होंगी 
गर तुम न हंसोगे तो, दुनिया वीरान होगी 

बिछोड

छोड़ के नाते तोड़ के बंधन
चला लिए वो काठ की गाड़ी
प्रतीक्षा माटी जल कर रहे
आगंतुक आगमन की तैयारी
अग्न लग्न को खड़ी ये सोचे
मिले यूँ ,न हो बिछोड हमारी
 

उम्मीद

कल उनसे मुलाकात होगी
बस आज की रात कट जाये

आवारा सी ज़िंदगी यूँ थी बनी
जैसे लहरें किनारे तक जाएँ

गर तुम्हारा सहारा न होता
तो सोचते गहरे डूब मर जायं

आँखों मे तुम्हारा चेहरा रहता है
नास्तिक नहीं पर मंदिर क्यूँ जाएँ

कसूर क्या था राजीव ये बता
क्यूँ बिछड़े पूछें और चले जाएँ

शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

अभियुक्त

ये क्या हुआ मुझे,
मै हवा में हूँ
और धरती पर भी
क्यूँ ऐसे सपने आते हैं
अपने पर क्रोधित हुआ अभी 
वजन मेरा कोई कम न था
पर अचम्भित हुआ तभी
न उपर लग रहा, न धरा पर
लगता दोनों मे दम न था
फिर मेरा दम था कहाँ गया
न हवा मे न धरा पर
फिर वो कहाँ धरा गया

अरे ये कोलाहल कैसा
सब खड़े धरा पर, मुझे घेरे क्यूँ
आपस मे क्यूँ बतिया रहे
अच्छा था पर चला गया
तो क्या उपर आत्मा
नीचे शरीर है
पर मेरा प्रश्न वही
जिस दम का दम भरा सदा
वो दम मेरा किधर गया
क्या उपर नीचे दोनों को मिलाकर
जो बनता उसको दम कहते हैं
या जो तैयार मुझे कर रहे
उनके दम पर दम भरा था

मै कन्धों पर
अपनी यात्रा का अंत देखता
स्वयं से ही जूझ रहा हूँ
जिनके दम पर दम भरा था
वो दम को निकला देख कर
पुरे दम खम से
मुझे  विलय करने निकल पड़े थे
जो वातानुकूलित का आदि था
वो पिंघलता जाता है
अभी कुछ अंश बाकि थे
पर बाट जोहने से भी कुछ न होगा
चलो ये तो चला गया
अब हम भी जाते है
छोड़ मुझे कुदरत संग
कुछ ऐसा बतलातें हैं
घर किसके हिस्से आएगा
पैसा कहाँ धरा था इसने
ढूंढ के बांटा जायेगा
तो जिसको बनाने की खातिर
मै लगा रहा, वो उनका था
तब मेरा क्या था धरती पर
संग कुछ भी न ला पाया था
जब कुछ मुझको लाना न था
फिर मेरा मेरा क्यूँ किया
यदि सब उनके लिए सम्भाला था
चलो आज मै उनसे मुक्त हुआ

चल जो सजा देनी है दे
तेरा मै अभियुक्त हुआ

रविवार, 8 अगस्त 2010

राष्ट्र की पहचान

हमको अपने देश पे मान यहाँ मिले अधात्म का ज्ञान
हर धर्म के लोग यहाँ पर हर धर्म है ज्ञान की खान
धर्म कर्म से हमने पाया भारत को शिखर पर पहुँचाया
अनेक भाषा, अनेक धर्मो ने मिलकर हिंदुस्तान बनाया


आओ करे हम उनकी बात जो हैं इंडिया को दर्शाते
सब में से एक एक को चुनकर राष्ट्र संग का दर्जा पाते


देखो मै जंगल का राजा, हिम्मत है तो सामने आजा
मुझसे सारा जग डरता है मेरे समक्ष पानी भरता है 
मुझसे तेज न कोई भागे, करूँ शिकार पहुंच के आगे
अब हम जंगल में थोड़े हैं डर कर अपने घर छोड़े है 
अपनी न है कोई औकात मानव मारे  रख कर घात


मै हूँ मोर आपका देखो, सावन आता मै खो जाता
भूल के मै पैरों की बात नाचता झूमता सारी रात
मेरे अग्रज अब न चाहे करूँ मै मानव के संग बात
वो कहते स्वार्थ है छाया मानव भर कर गोली लाया 
किसी भी क्षण वो करेगा घात, क्या सुनाऊ तुमको बात


मै हूँ नन्हा मुन्ना फूल, कमल नाम तुम गये क्यों भूल
मै कीचड़ मे हूँ  खिलता  हर स्थान पर नहीं मै मिलता
जो मुझको नुक्सान पहुंचाए उसको शर्म बहूत ही आये
कीचड़ में जो भी उतरेगा मुख तन कीचड़ कीच मलेगा
कीचड़ ही है मेरा निवास फटके न कोई डर के  पास


ओ हमारे हिंद के वासी क्या कहें हम बात ज़रा सी
हमको भी जीने का हक है हिंद में रहने का हक है
हम बढ़ाते हिंद की शान हिंद के राष्ट्रीय  सम्मान
न मारो हमे तुम इन्सान हम भी अपने राष्ट्र की जान

लिखा

लेखन लिख लिख सब गए, लिखा कभी  नहीं  जाये
जो लिखा पढ़ तुम भी लिखो लिखा सफल हो जाये

चल पड़े

संगी साथी सब चल पड़े चले मंजिल की ओर 
एक एक कर बिछड़ने लगे समीप ही मेरी ठोर


दोस्तों की भीड़ न थी, जो हैं वो कम होते गए
होश आया तो पाया,  हम हम से हम होते गए  

बुधवार, 4 अगस्त 2010

पानी


चला चला मै यू चला
लिए वो धुन, अपनी ही सुन
न कोई संग बिना डगर
चला चला मै यू चला

जो भी मिला, वो मिल गया
बिना कहे, बिना रुके
लिए उसे अपने ही संग
प्रवतों को चीरकर घाटीओ में कूदता
बस आँख अपनी मूंदकर
जिधर मिला उधर चला
चला चला मै यू चला 

अपनी अनोखी राह थी
न बाम की न गाँव की
अपनी न कोई चाह थी
धरा की प्यास को बुझा
जिसने चाहा उसे मिला
इधर मिला उधर मिला
चला चला मै यू चला

झरना नदी नाला बना
सागरों को जोश बना
बादलों का शोर  बना
बाढ़ का प्रकोप बना
क्रोधित हो विनाश बना
सूखे को ग्रास बना
चला चला मै यू चला

गोरी की गागरों में
प्यासों की प्यास बुझा 
कहीं मीठा नमकीन बना
जिससे मिला वैसा बना
कर नालो को भरा भरा
नदिया में वो लहर उठा
चला चला मै यू चला

अलग अलग नाम मिले
अलग अलग गाँव मिले
बालकों का खेल बना
खेतों को खिला खिला
कल कल की वो धुन बजा
पर थक कर नहीं मै थमा
चला चला मै यू चला

मंगलवार, 3 अगस्त 2010

मौत

मौत
जिंदगी को तू कब तक ढोना चाहेगी
समय समय
पर उसको छध्म बाग़ दिखाएगी
बेचारी जिंदगी,
तेरे चुंगल से कब छुट पायेगी
राजीव बता इसे
एक दिन ये सवयं मौत बन जायगी

तेरे न है

ओ पथिक पथ पर मिलने वाले
तेरे न  है बस याद रख
मंजिल तेरी दूर अभी
बस चलता चल तू अपने पथ

राहों में तुझे छलने वाले
हर पग पर  तुझे ललचायेंगे
मंजिल तेरी जो मंजिल नहीं
उस मंजिल की ओर ले जायेंगे 
ओ पथिक पथ पर मिलने वाले..............


सबकी मंजिल है अलग अलग
पाते ही सब छोड़ जायेंगे
राहें तेरी डगमग होंगी
पथ जगमग सा दिखलायेंगे 
ओ पथिक पथ पर मिलने वाले..............

इनसे बढ़के कोई मीत नहीं
इनके सुर सा कोई गीत नहीं
ये भटकाने तुझे मंजिल से
रेतीली तृष्णा जगायेंगे
ओ पथिक पथ पर मिलने वाले..............

जिस पथ पर तू है निकल पड़ा
उस पथ पर ही तू चलता चल
जो मंजिल तू पाने निकला
उस मंजिल को तू पाजायेगा
ओ पथिक पथ पर मिलने वाले..............

सोमवार, 2 अगस्त 2010

मत दिख थका

ता उम्र धकेला था जीवन
अब मंजिल की सुध आई
चलने से पहले दिखे थका
चल अब तो चलना  है भाई

पथरीले पथ चलते विरले
तू उन विरलों में एक बन
राह के राहगीर दिखेंगे तुझे
तू राह तेरी अपनी ही चुन

मंजिल है सबकी अलग अलग
तुझे अपनी मंजिल ही जाना है
राहगीरों की उस भीड़ में भी
तुझे अपना जहान बसना है

देखना, सुनना तुझे सबको है
पर तुझे तेरा ही राग बनना है
राहगीरों राह के भटके जो मिले
पर तुझे ढूँढना तेरा ठिकाना है

तू पा लेगा ये तुझे है पता
अब चल मंजिल की ओर तू
चाहे धुप जले या सांझ ढले
चल पथिक पायेगा भोर तू

अब चल तुझको बस चलना है
मंजिल चलके है कब आई
चलने से पहले मत दिख थका
चल अब तो चलना है भाई