शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

अभियुक्त

ये क्या हुआ मुझे,
मै हवा में हूँ
और धरती पर भी
क्यूँ ऐसे सपने आते हैं
अपने पर क्रोधित हुआ अभी 
वजन मेरा कोई कम न था
पर अचम्भित हुआ तभी
न उपर लग रहा, न धरा पर
लगता दोनों मे दम न था
फिर मेरा दम था कहाँ गया
न हवा मे न धरा पर
फिर वो कहाँ धरा गया

अरे ये कोलाहल कैसा
सब खड़े धरा पर, मुझे घेरे क्यूँ
आपस मे क्यूँ बतिया रहे
अच्छा था पर चला गया
तो क्या उपर आत्मा
नीचे शरीर है
पर मेरा प्रश्न वही
जिस दम का दम भरा सदा
वो दम मेरा किधर गया
क्या उपर नीचे दोनों को मिलाकर
जो बनता उसको दम कहते हैं
या जो तैयार मुझे कर रहे
उनके दम पर दम भरा था

मै कन्धों पर
अपनी यात्रा का अंत देखता
स्वयं से ही जूझ रहा हूँ
जिनके दम पर दम भरा था
वो दम को निकला देख कर
पुरे दम खम से
मुझे  विलय करने निकल पड़े थे
जो वातानुकूलित का आदि था
वो पिंघलता जाता है
अभी कुछ अंश बाकि थे
पर बाट जोहने से भी कुछ न होगा
चलो ये तो चला गया
अब हम भी जाते है
छोड़ मुझे कुदरत संग
कुछ ऐसा बतलातें हैं
घर किसके हिस्से आएगा
पैसा कहाँ धरा था इसने
ढूंढ के बांटा जायेगा
तो जिसको बनाने की खातिर
मै लगा रहा, वो उनका था
तब मेरा क्या था धरती पर
संग कुछ भी न ला पाया था
जब कुछ मुझको लाना न था
फिर मेरा मेरा क्यूँ किया
यदि सब उनके लिए सम्भाला था
चलो आज मै उनसे मुक्त हुआ

चल जो सजा देनी है दे
तेरा मै अभियुक्त हुआ