मंगलवार, 24 अगस्त 2010

उम्मीद

कल उनसे मुलाकात होगी
बस आज की रात कट जाये

आवारा सी ज़िंदगी यूँ थी बनी
जैसे लहरें किनारे तक जाएँ

गर तुम्हारा सहारा न होता
तो सोचते गहरे डूब मर जायं

आँखों मे तुम्हारा चेहरा रहता है
नास्तिक नहीं पर मंदिर क्यूँ जाएँ

कसूर क्या था राजीव ये बता
क्यूँ बिछड़े पूछें और चले जाएँ

2 टिप्‍पणियां:

Manish Pandey ने कहा…

Ummeed hai bhavishya meing aur bhi achchi kavitayein padhane ko milengi...

संगीता पुरी ने कहा…

वाह .. आपको रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!