कल उनसे मुलाकात होगी
बस आज की रात कट जाये
आवारा सी ज़िंदगी यूँ थी बनी
जैसे लहरें किनारे तक जाएँ
गर तुम्हारा सहारा न होता
तो सोचते गहरे डूब मर जायं
आँखों मे तुम्हारा चेहरा रहता है
नास्तिक नहीं पर मंदिर क्यूँ जाएँ
कसूर क्या था राजीव ये बता
क्यूँ बिछड़े पूछें और चले जाएँ
2 टिप्पणियां:
Ummeed hai bhavishya meing aur bhi achchi kavitayein padhane ko milengi...
वाह .. आपको रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!
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