शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

रिश्ते

रिश्तों पर नज़र तुम रखते हो 
रिश्तों को नज़र लग जाती है 
प्रेम से है बनी हर रिश्ते की नीव 
वो प्रेम की नीव हिल जाती है

खुदा के बनाये है रिश्ते सभी 
शक कोई खुदा पर कैसे करे 
इल्जाम खुदा पर जब भी लगा 
खुदा की खुदाई हिल जाती है

क्या सुनते कहते सबसे हैं वो
वो ही जाने ये उनकी हैं बातें
खुद को उनमे खुद फंसा कर
रिश्ते में लकीर पड़ जाती है

यकीन हो तो अपना रिश्ता
इस जहान में कभी न रिस्ता
प्रेम जो बांटो आँख मूंद तुम
रिश्तों की झड़ी लग जाती है  

रिश्तों पर नज़र तुम रखते हो 
रिश्तों को नज़र लग जाती है 
प्रेम बना हर रिश्ते की नीव 
वो प्रेम की नीव हिल जाती है

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

दिवाली बदले

न तुम्हारी दिवाली बदली न बदली मेरी दिवाली 
तुम पहले से खेल रहे हो मै भी पहले सी हूँ खाली 
बाहर फटते फटाखे मुझको भीतर फोड़ रहे हैं 
इस बरस भी न वो आये दिन बरस से दौड़ रहे हैं
मेरा अंगना कब लिपुंगी, कब दीवारें पोतुंगी 
एक दिया अंगना बालूं मेरा फूल तो भेजो माली

चाँद से भेजा था संदेसा, बैरंग लौट के आया है 
पवन निगाहें चुरा रही है, पता उसे न पाया है 
तुम चिठ्ठी लिख कर भेजो मै अनपढ़ हूँ पढ़ लुंगी 
हर अक्षर ऊँगली रख मै झोली तारों से भर लुंगी 
भीगे नैन गगन निहारे दहलीज भिगो रहे हैं
जैसे पतझड़ जाने वाला, फैलेगी अब हरियाली 

सुध भी खोई खोई बुध भी खुद को भी खो दूंगी
तरस तरस बरसों बीते अब साँसों को भी न लुंगी 
तीज त्योहारों पर विरह अब नही सह पाती हूँ 
हर दिन तीज मनाऊं, मै सपनों में खो जाती हूँ
अब तो आओ मेरे साजन, बैठी ले सुनी लाली 
मेरी भी दिवाली बदले, खेलूं न रहूँ मै खाली 
   
     

सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

टूटन

ये सामाजिक तौर तरीके
सच छुपे, आडंबर दीखे
रिश्ते कहाँ खो गये पुराने
आज रिश्ते खींचते दीखे

मौसम ने बदली पगडंडी
बिन मौसम मौसम दीखे
कब सांझ ढली कब भौर हुई
समय गया जाता न दीखे

खिंच रहे हो हर क्षण को
असमंजस में,रबर सरीखे
टूटन ही है पास तुम्हारे
न टूटे कुछ ऐसा सीखे    

  

रविवार, 23 अक्तूबर 2011

विडंबना

मानव सभ्य है या असभ्य

यदि सभ्य है
तो क्या ज़रुरत है
संविधान
और कानून की
यदि असभ्य है
तो क्या ज़रुरत
संविधान
और कानून की  

सभ्य समाज
संविधान
पुलिस नियंत्रण
और
कचहरी
अजब विडंबना है ठहरी 

शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

विरहन की विरह

बादल ने ली है अंगड़ाई
क्यूँ याद तुम्हारी आई
रिमझिम फुहार पड़ते
हिचकी पे हिचकी आई

मौसम को सहते रहते 
पर तुमसे कुछ न कहते 
एक जाता दूजा आता 
पर न हमको डिगा पाता
बारिश की ये जो बूंदे
छीने हैं मेरी तन्हाई 

सोचो तो क्या तब होता 
जो मौसम न ये आता 
मिलने की एक अग्न का 
अहसास न हो पाता 
अंगो ने तोडा मौन 
ज्यों ही चले पुरवाई

विरहन की विरह देखो 
रब से न देखि जाती 
वो कैसे सह रही है 
सहन न देखि जाती 
उस विरहन की अग्न को 
भडकाने बूंदें आईं   

बादल ने ली है अंगड़ाई
क्यूँ याद तुम्हारी आई
रिमझिम फुहार पड़ते
हिचकी पे हिचकी आई

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

जूता

ये जीवन तो गया यूँही 
अगला न व्यर्थ जाये 
बैठ माँगा प्रभु के समक्ष
अगला किसी काम आये 

किसी के हाथ में हो
किसी के चरणों में 
किसी की कमर से 
किसी के कूल्हों से 
किसी के सर पर रहूँ 
हर किसी के घर रहूँ
प्रभु ऐसा अवतार दे
न मेरे बिन कोई रहे

प्रभु का उपकार समक्ष आया  
अगला जन्म जूते के रूप में पाया

बुधवार, 19 अक्तूबर 2011

दोस्ती

आज एक दुश्मन मिला जो 
दोस्त का चोला ओढ़े था 
दोस्ती अपनी निभाने 
अस्त्र शस्त्र वो जोड़े था

दोस्ती का रूप अनोखा 
कहीं प्रेम है कहीं है धोखा 
मत कर यारी आँखें मूंदे 
पीनी होगी लहू की बूंदे  
अब कुछ ऐसे भी आते हैं 
समय पर धोखा दे जाते हैं 
दोस्ती की परिभाषा में वो  
लहू में लथपथ हो जाते हैं 

आओ उस इंसान को ढूंढे 
दोस्त बने शैतान को ढूंढे 
उसके उजले वस्त्र मिलेंगे 
दाग नही छुपे शस्त्र मिलेंगे 
मुख भरा मुस्कान से होगा 
रूप मिला शैतान से होगा
कोसने का असर न कोई 
बिन हिले चट्टान सा होगा 

और जो चाहो उसे जानना 
करना उससे गलत कामना 
इच्छा जो तेरी पूरी करदे 
गलतियों से दामन भर दे 
उससे बड़ा न दुश्मन कोई
उसमे दोस्ती बीज न बोई 
एक दिन ऐसा घात करेगा 
जिसका न कभी घाव भरेगा

दोस्तों चाहे अकेले रहना 
दोस्ती में ध्यान से बहना 
वर्ना एक दिन पछताओगे 
मेरे संग तुम भी गाओगे 
आज एक दुश्मन मिला जो 
दोस्त का चोला ओढ़े था 
दोस्ती अपनी निभाने 
अस्त्र शस्त्र वो जोड़े था

सोमवार, 17 अक्तूबर 2011

बिछड़े दोस्त

बुझ चूका है दिया मेरे संसार का
ग़म खाए जा रहा मुझे बिछड़े यार का 
वो बचपन का खेला वो जवानी का मेला 
संग संग रहे हम न छोड़ा अकेला
आज करके अकेला तू कहाँ छुप गया रे   
एक बार तो बता तू पता अपने घर का


न दिनों का पता था न रातों की चिंता 
संग चले थे सदा खोया पल भी नही था  
वो बारिश का पानी, उसमे भीगी जवानी 
गर्मियों की घमोरी, तन से टप टप पानी 
सर्दियों का वो कम्पन, दोस्त संग सहा था
अब कैसे कटेगी जिंदगानी पता क्या

उपर वाले बता तू तेरा कैसा ये खेला
बिछोड़ा तो बनाया क्यूँ प्यार उडेला
दोस्तों की कमी है तुने उसको बुलाया
एक बार ना सोचा कैसे दिल दहलाया
कैसे अब सहूँ बिछोड अपने यार का 
ग़म खाए जा रहा मुझे बिछड़े यार का

रविवार, 16 अक्तूबर 2011

समय बदलना चाहिए

फिर वही चिंगारियां बदल रही शोलों का रूप 
फिर वही बिन तपन, बिन अग्न आई है धुप 
चुलेह तरसेंगे यहाँ क्या दो वक्त की सेकने
बिलबिलाते पेट तरसेंगे कोई आए फेंकने
बहुत हुआ अब ये नजारा न चाहिए सामने 
उठो समय हुआ चलें हाथों में हाथ थामने 

दूसरों से उम्मीद रखने की वो आदत छोड़ दे 
आयेगें हमको बचाने नीव सोच की तोड़ दें 
आओ ढूंढे आग ये बार बार क्यूँ लग रही 
अपाहिज होते ही क्यूँ चाह उनकी सज रही 
कहीं आदत पड़ न जाए बैसाखी की थामने 
उठो समय हुआ चलें हाथों में हाथ थामने
 
कहीं हर चिंगारी का उनसे कोई नाता नही 
बिन स्वार्थ कौन किसी दूजे को बचाता नही
छुपे हुए उस शातिर को, कुचलना चाहिए 
अब समय हुआ, चलो समय बदलना चाहिए
नये भौर के साथ, नई फंसलों को काटने  
उठो समय हुआ चलें हाथों में हाथ थामने    

प्रेम का संदेश वो हर बार देकर जाते हैं 
धार्मिक भ्रांतियां का कारोबार दे जाते हैं
भाई भाई थे यहाँ भाई भाई से रहते थे 
पर उन भाइयों में, भी नया भाई दे जाते हैं
हम ही बहुत है यहाँ, कोई आके देखे सामने 
उठो समय हुआ चलें हाथों में हाथ थामने 

छोडनी होगी आदत मध्यस्थ बैठाने की 
घर के झगड़ों में राय उनकी मंगवाने की 
अपना घर चलाना है तो हम ही चलाएंगे 
क्यूँ उनकी शर्तों से चुलेह घर के जलाएंगे 
गिरें नही सम्भलना है अब मंजिल नापने  
उठो समय हुआ चलें हाथों में हाथ थामने  
       
 

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

रहमत

या खुदा ये कैसा कर्म है 
हम पर तेरी महर हुई 
बीत गया जो अंधकार था 
अब नई मेरी सहर हुई  

ये कैसी बदली काली थी 
दीखता था वो न दिखा 
बिछड़ गये जो अपने थे
संग साया तक भी न रुका 

नैनो से मोती न थमते 
जुबां हलक में जमती थी 
कान तरसते थे सुनने को
जो बाहों में थमती थी 

तेरी रहमत के आगे अब 
सजदा सजदा और सजदा 
कब क्या होगा कैसे होगा 
जाने तू बस तू है खुदा

या खुदा ये कैसा कर्म है 
हम पर तेरी महर हुई 
बीत गया जो अंधकार था 
अब नई मेरी सहर हुई

बुधवार, 12 अक्तूबर 2011

बुझा दिया

मै दिया हूँ बुझ जाऊंगा अभी 
तुम मुझे हवाओं से दूर रखों 
मेरे पास तो बैठों ज़रा सी देर 
थोड़ी ओट करो थोडा जीने दो

उम्र यूँही तमाम मेरी डर डरी
थोडा हौंसला भी तो लेने दो 
चैन टीमटीमाहट को मिले
अपनी रेखाओं से तो जकड़ों

तेरी एक चिंगारी लेके मै 
राह चल पड़ा जो तुने दी 
खुदको जलाया इसलिए 
तेरी राह में उजाला तो हो

तुमने है पायी जो मंजिलें
उनमे हमारा ही साथ था 
जो तुम कहो अकेले थे तुम 
हम बुझ गये ये धुआं बहे   

सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

चल बसा समझना

तुमेह खो कर हमने है पाया था खोया
मिले तुम थे जबसे, जगा था पर सोया
वो नयनो में मोती कम होई थी ज्योति 
तारों से था पूछा क्यूँ आँख नम  होती
हम जुदा थे हमीसे, हम हमे ढूँढ़ते थे 
यूँ मिलते थे सबसे, ज्यूँ सबमे तुम्ही थे 
अचानक ये कैसा झोंका. तूफान का आया 
सभी तो खड़े थे, पर तुमको को नहीं पाया

जो जाना था तुमको, तो आना था कैसा
न अब का ही रखा, न पहले सा छोड़ा
चलो जो हुआ सो, हुआ था जो होना 
अब जीना हमे है पर, तुम पल न रोना 
ये जग जानता है न तुम तुम हो न हम 
जख्म जो दिए तुमने, हम रखेंगे फोया 

यादें मिलेंगी जो तुम्हे हर राह पर 
उन्हें देखकर तुम, बस अनदेखा करना
संजोये हमारे, स्वप्नों को बस तुम
स्वप्न ही समझना, न देखा करना
तुम तो चले गये, मुस्कुरा बिखेरे
हमे भी अब तुम, चल बसा समझना  

तुमेह खो कर हमने है, पाया था खोया
मिले तुम थे जबसे, जगा था पर सोया