बुधवार, 21 मार्च 2012

कर्राहट करता जीवन

कर्कश कर्राहट करता जीवन यूँ निकला जाता है
क्या पाया जन्म गंवाया नजर कुछ नही आता है

पथरीले पथ रिस्ते रिश्ते घाव बढ़ाते संग साथ चले
पग पग कोशिश करते मंजिल मुझसे दूर दूर चले

एकाग्र न खो व्याग्र न हो बस पथ पर अपने चला चल
छदम भेष में पग पग पर तुझे भटकायेंगे छलावे छल

देख तनिक उस सैनिक को जो छोड़ सब जीता जाता है  
टिमटिमाती लौ जलाती बाती पगडंडी को चमकती है 

तू तेरी मंजिल पाने में अपना सयम क्यूँ खोता जाता है 
कर्कश कर्राहट भरे जीवन में मंजिल की ओर आता है

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

विरोध में भी लक्ष्य पर नजर गड़ाये रखनी होगी हमें।

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

विरोध के बाद भी जीवन आगे बढने से कभी नहीं रुका ....बस बढते जाएँ