छंट गये बादल उड़ गयी धूल
नयी सुबह उठ बिता सब भूल
इस नई किरण के संग तू चल
कर सपनों को सच्चा हर पल
जब सब कुछ था सब अपने थे
छिनते देखा छितरे वो अपने थे
एकांकी का एहसास हुआ तब
रिश्तों का एक पास हुआ तब
देख तेरे एक द्रढ़ निश्चय ने
तुझको फिर वहीं खड़ा किया
देर न कर न याद कर शूल
नयी सुबह उठ बिता सब भूल
नयी सुबह उठ बिता सब भूल
इस नई किरण के संग तू चल
कर सपनों को सच्चा हर पल
जब सब कुछ था सब अपने थे
छिनते देखा छितरे वो अपने थे
एकांकी का एहसास हुआ तब
रिश्तों का एक पास हुआ तब
देख तेरे एक द्रढ़ निश्चय ने
तुझको फिर वहीं खड़ा किया
देर न कर न याद कर शूल
नयी सुबह उठ बिता सब भूल
2 टिप्पणियां:
इस नई किरण के संग तू चल
कर सपनों को सच्चा हर पल........सही हैं जी
हमने सपनो को भी सच होते देखा हैं .....
हर पल उपयुक्त है एक नये प्रारम्भ के लिये।
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