शुक्रवार, 23 मार्च 2012

नयी सुबह

छंट गये बादल उड़ गयी धूल
नयी सुबह उठ बिता सब भूल
इस नई किरण के संग तू चल 
कर सपनों को सच्चा हर पल

जब सब कुछ था सब अपने थे
छिनते देखा छितरे वो अपने थे
एकांकी का एहसास हुआ तब
रिश्तों का एक पास हुआ तब

देख तेरे एक द्रढ़ निश्चय ने
तुझको फिर वहीं खड़ा किया
देर न कर न याद कर शूल
नयी सुबह उठ बिता सब भूल




2 टिप्‍पणियां:

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

इस नई किरण के संग तू चल
कर सपनों को सच्चा हर पल........सही हैं जी


हमने सपनो को भी सच होते देखा हैं .....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हर पल उपयुक्त है एक नये प्रारम्भ के लिये।