मंगलवार, 20 मार्च 2012

नारी

श्रद्धा मान पूजी नारी
तुल्य देवी सी सारी
सौन्दर्य  की अद्भुता
ममता माँ में उभारी

आज बिखर से गये  
नारी समस्त वो रूप
नारी को न भाए नारी   

गुण गये कहाँ सूख

नारी नारी का कर रही
शोषण पल प्रति पल
चित्रपट पर देख सदा
दुश्चरित्र कपट व् छल

कंधे से कन्धा मिला
चली छमक संग संग
परनारी संग बोलते
पुरुष को कहे वो नंग

परपुरुष नारी मिले
माने सब संग साथ
बूझो तो झट से कहे
कन्धा कंधे के साथ

हर क्षण नारी पर करे
नारी ही घातक वार
पुरुष काहे सब सहे
विधि की लिखी मार

नारी को नारी दिखे
शारीरिक भूख की मारी
पुरुष छुपा रिश्तों से फिरे
कब कहलाये व्यभिचारी

अब तो नारी सुध लेले
वरना तेरी भी आये बारी
बदन के रिश्ते से बड़े
निभा रही और भी ये नारी

तू क्यूँ कोसती अब जाती
पुरुष संग हो परनारी
पता नही हो पूज्य रुप मे
पर तेरे कारण थू सारी जाति            

4 टिप्‍पणियां:

मुकेश पाण्डेय चन्दन ने कहा…

sundar rachna ! rajive ji

रचना ने कहा…

नारी के विषय में आपकी "छोटी सोच और विचार " कहती हैं आप की ये कविता .

Shikha Kaushik ने कहा…

YE KALAM TO KEVAL PURUSH KI HAI RAJEEV JI ..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

एक संक्रमण से गुजर रहा है समाज।