शनिवार, 28 अप्रैल 2012

हक नागवारा था

मन में उमंग नही थी कि प्यार करूँ, पर हो गया
ठान बैठा था कि कभी न इजहार करूँ, पर हो गया
नजरें चाहती थी तुम्हे हर पल देखना, देखती थी 
खुद को छुपता था तुमसे, पर सामना हो ही गया 

पहले नजरें दरवाजे पर होती थी, पत्र के इंतजार में
पहले नजरें छुप छुप रोती थी, उनके एक दीदार में 
आज  समय  ने करवट बदली, न दीदार न इंतजार 
अब  हम  तरसते हैं उनके, फोन  संदेश  प्यार में
  
आज वो भूल गये वो घंटी, समय के जो पाबन्द थे
रातें करवट में, दूर से लिपटने  के आदतमंद थे 
आज ये  कैसा मौसम  बदला, खोया सा पगला 
बोल पहला हमारा ना  सुना जिसकी खाए सौगंध थे  

समय का तमाचा था जो समय ने घुमा के मारा था 
टुटा हुआ  कांच  सा बिखरा था जो स्वप्न हमारा था 
हम  औन्धे पड़े सोचते रहे, प्यार को ही पूजा हमने
पर उन्हें हक जताना हमारा उनपर  ही नागवारा था  

गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

कातिल न समझो

जिनके लिए हमने छोड़ी थी दुनिया
दुनिया से ही हमको  आज मिटा बैठे
लुट तो चुके थे हम, कुछ भी न बचा था
पर ढूंढ़ कर बचा वो फिर भी चुरा बैठे   

उनका तो वादा था, जन्मो जन्म तक का
अगला न देखा पर, वो आज का मिटा बैठे
हम मिट गये तो क्या, हाथों से उन्ही के
आखिरी सांस जो निकली गोदी में जा बैठे

कातिल न समझो उनको नन्हा सा दिल हैं वो
सादगी ये उन्ही की थी, जान हम लुटा बैठे

ये न समझना लोगो गैर हो गएँ हैं अब वो
कत्ल जो किया उन्होंने, पूरा दिल लगा बैठे
मौत तो आनी है , बचेगा न कोई उससे
एक नजर तो देखो हम जन्नत में जा बैठे

मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

सपने अपने ही न थे

जब सपने अपने ही न थे उनका जाना रोना क्या
बंद आँख में आते रहते डरते जो फिर खोना क्या

हम जो जीते उस हकीकत में जिसमे सब भोगना
खुशियाँ हों या होयें दुखी हम नयनो को है सोचना
मेरा दावा जी कर देखो जो सुख हर चाहो भोगना
क्यूँ कोसा करते हो जीवन थोड़े दुःख से होना क्या

खुद को मुसाफिर समझो पहले फिर सफर का लो मज़ा
सामने बैठा अपना न है कब छोड़ चले सब उसकी रजा
माथ हाथ धर तब तेरा सोचेगा मिली कब की यह सजा
जब तेरा कोई अपना न है खुद में रम छोड़ सब ह्या 

जो दीखता तुझे रात का सपना दिन में न था वो अपना
दिनभर मशक्त करता फिरता रात  में न चाहे जगना
जहाँ से उठाया छोड़ा वहीँ पर लड़ मर रहे अपना अपना
कज़ा ले जब संग चली तो काम न आवे कोई हकीम दवा

जब सपने अपने ही न थे उनका जाना रोना क्या
बंद आँख में आते रहते डरते जो फिर खोना क्या



गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

प्रेम धर्म

सुन लो ये है प्रेम कहानी
तुमने न सुनी तुमने न जानी
चाऊ की जान, थी चाई बस्ती
चाऊ बिना न, चाई की हस्ती
यौवन आया, अग्न लगाया
दोनों बन बागी, विवाह रचाया
सुखी जीवन फल फूल रहा था
तीन कलियों से घर महका था
सुख की सीमा थी अपरम्पार
चिंता मुक्त बस प्यार ही प्यार

एक दिन ऐसा तूफान आया
चाऊ का चाई पर शक गहराया
दोस्त जो प्यार में ईर्ष्या करते
कान भरे और कलंक लगाया
प्यार दोनों का नजर खा गई
चाऊ के दिल ने अपराध पाया
खरीद खंजर पहुंचा घर अंदर
बुद्धि बंद चाई का खून बहाया        
अपराध गहरा पुलिस का पहरा
सजा हुए तो पश्चाताप छाया

तीनो कलियों की किस्मत चमकी
चाई की जान जीसस से बक्शी 
सज़ा हुई पूरी थी शर्मिंदगी दुरी
चाऊ चाई पास, जा भी न पाया
चाऊ चाई बिना, फिरे मारा मारा
अंदर से दुखी, शरीर से वो हो लाचारा
लगने लगा बस, जाने को अब है वो
पूछा भाई कोई,  क्या है तुम्हारा
आँखे बह निकली, चाई सिवा न कोई
पर कैसे मै जाऊं, भरा  पाप से सारा

चाई सुनते ही सब, बेसुध हो भागी
भूल गई बीती, प्रेम कलियाँ जागी
घर लाते ही, सेवा को धर्म माना
चाऊ ने पाया, दूसरा जन्म जाना
प्रेम ले आया, चाऊ चाई सा धर्म
भूल गये सब, वक्त के दिए वो मर्म
समय ने कब , किसको है बक्शा
चाऊ चाई चले गये, छोड़ ये शिक्षा
प्रेम धर्म से बढ़ कर न कोई
प्रेम होई तो चाऊ चाई सा होई 

मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

गलतफहमी का शिकार

ये कहानी है उस हंसते हुए इन्सान की
जो खो गया कहाँ न जान सका जहान भी

हँसता हँसाता था आंसू सबके सुखाता था
वो सबका सब उसके कोई गैर न बताता था
एक दिन सब मिले ख़ुशी में झूम झूम मचले
आज वो दूल्हा बना बनकर देखो कैसे ठना
नजर न उसको लगे हाय न उसको पड़े
हर तरह के काजल उसके छुप छुप लगे
दुल्हन उसकी आई  दुनिया ने ली बलाई
परिचय में सभी चाची ताई बहन बताई

दुल्हन चकरा गई रिश्ते सुन घबरा गई
पूछ बैठी तभी ये सब सगी हैं या पराई 
दुल्हे ने समझाया सबसे प्यार मैंने पाया
खून से न सही दिल से रिश्ता निभाया
एक कुटिल मुस्कान दुल्हन दिखला गई
मन ही मन कसमसाई और झल्ला गई
समय बीतता गया दूल्हा सिमटता गया
धीरे धीरे दूर हो वो सिमित हो सा गया

पहला फूल खिला, बहिन को हक बुआ मिला
दुल्हन ने बहिन का भी दिया रिश्ता हिला
दुल्हे के मन के अंदर दर्द यूँ  जमने लगा
कुछ समय में ही वो मिलने से बचने लगा 
रिश्ते हैरान थे असल से वो अनजान थे
अंदर की ख़ामोशी से हर दिल परेशान थे
उसने हंसते हुए सब दर्द खुद ही सहे
हो रहा था जुदा बिन जुबान कुछ कहे

पर रिश्ते थे प्यार के मिलते यूँ यदा कदा
दुल्हन जान पड़ते ही चली तोड़ रिश्ता सदा
प्यार के रिश्तों को उसने दे दिया वो  नाम
रिश्ते हो शर्मशार बदले सब मरे समान
रिश्तों को कर बदनाम गंदा दे दिया नाम
बहिन भी बदनाम चाची को गंदा  नाम
दूल्हा बदनामी से डर कर यूँ सहम गया
लगा प्रभु का उसपर जो रहम था गया

दुल्हे ने समझाया रिश्तों का महत्व बताया
दुल्हन कुछ न पिघली अलग होने वो निकली
गलतफहमी का शिकार घर की करने लगी फाड़
अडिग अपनी जिद पर ऐसे ज्यूँ जंगल में ताड़
अनहोनी ने वो किया दूल्हा दीखता  बीमार
दुल्हन की नादानी ने किया दूल्हा  लाचार
बोझिल आँखे धीरे धीरे तन्हाईयों में खो चली
हंसता चेहरा बुझ गया आँखें नम सब हो चली 

दुल्हन पड़ी गई अलग थे प्यार के रिश्ते सजग
कमी न होने देंगे पर खोया वो था कुछ अलग
दुल्हन की आँख खुली देखा छायी है  काली घटा
अरमान धरे रह गये खो चुकी थी वो हंसमुख छटा
एक नादान अग्नि में जल कर हुई खुद स्वाह
न लौट सकेंगे वो अब जिनको कर दिया तबाह
दुल्हे राजा माफ़ करो दुल्हन संग इन्साफ करो
मन तभी बोल उठा जैसा किया अब तो वही भरो   
        

सोमवार, 9 अप्रैल 2012

स्वयं संयम

जब जीना माँगा जीवन से जीने का मकसद खींच लिया
जब चाहा मौत हमे आये उसने मौत का पहलू भींच लिया
जीना मरना जब हाथ नही तो क्यूँ चाह  रहें सदा साथ यहीं
न अपने चाहे कुछ भी मिले, न बिन बहार खिले फूल कहीं
खुशियों में अब कैसी ख़ुशी गम में बिन नम अब नयन रहें
शांति चाहे ढूंढे न मिले पर बेचैन दिलों में अब चैन रहे   

          

शनिवार, 7 अप्रैल 2012

हमसफर

मै चला अपने सफर तुम चले अपने सफर
जब चले हम साथ थे बन के निकले हमसफर

मंजिलें न एक थी न हम दीखते हमसफर 
कुछ अजीब सी डगर दोनों चले हम सफर

मोड़ दोनों के अलग राहें भी थी अलग अलग
अलगाव का था ये सफर कैसे थे हम हमसफर

मोड़ पर मिल जाओगे सामने नजर आओगे
सोचेंगे देखा कहीं था जब चले थे हम सफर

राह में अपनी कांटे थे, सब हमने ही छांटे थे
पग न तेरा डगमगाए  तुम चलो अपने सफर

मंजिल जो तुम पा लोगे सफर को निभा लोगे
सोचेंगे मकसद हुआ अब जो चले बन हमसफर
       

सोमवार, 2 अप्रैल 2012

ऐसे खेल जीवन

न खेल तू ऐसे खेल जीवन
जीवन मुश्किल में पड़ जाए
जीना तेरा हो हर पल दूभर
मौत भी दूर खड़ी हो मुसकाय

जब जब चाहा मै तुझे संवारूं
तू दिखती अपने को उलझाये
हर तार तेरा मुझे झटका दे
ज्यूँ छुआ जहाँ विधुत जाए

कितना तुझे बचा कर डोलूं
कितना तुझे हंसा कर डोलूं
जग जालिम  कुछ भी चाहे
तू रहे दिखे उसे आंसूं बहाए 

मैंने तुझे था खूब समझाया
बातों में किसी के तू आना न
पर तू पर विश्वास कर बैठी
अब देख खड़ी तू ही पछताए

ये बात यदि अब भी तू समझे
बचे हुए दिन सुखमय आये
अन्यथा देख  इस  जीवन में तेरे
जो आये वो सिर्फ दुखमय आये