सोमवार, 9 अप्रैल 2012

स्वयं संयम

जब जीना माँगा जीवन से जीने का मकसद खींच लिया
जब चाहा मौत हमे आये उसने मौत का पहलू भींच लिया
जीना मरना जब हाथ नही तो क्यूँ चाह  रहें सदा साथ यहीं
न अपने चाहे कुछ भी मिले, न बिन बहार खिले फूल कहीं
खुशियों में अब कैसी ख़ुशी गम में बिन नम अब नयन रहें
शांति चाहे ढूंढे न मिले पर बेचैन दिलों में अब चैन रहे   

          

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

धीरे धीरे ही सही विचारों में साम्य बना रहे।