शनिवार, 31 जुलाई 2010

प्रदुषण

चटर पटर करते पटाखे
कितना शोर करते पटाखे
चारों ओर धुआं ही धुआं
दूषित हवा करते पटाखे


मल को जल में मत मिला
जल के संग जीवन  होए
मल जल दलदल बने तो
जीवित बचा नहीं कोई

बुधवार, 28 जुलाई 2010

गोज

आया पाया पोतड़ा
गया कफ़न के संग
जीवन पूरा कर गया
कमाया खूब बे अंत

जो कमाया यहीं रहा
छूटा देह का बोझ
ना पोतड़ा जगह मिली
ना कफ़न में कोई गोज

प्रेम

वो जो कहे चाँद तो मै चाँद तोड़ लाऊं
सूरज की मांग करे किरणों समेत लाऊं
पर वो मांगे प्रेम है मै प्रेम कहाँ से लाऊं
प्रेम आंतरिक अनुभूति है ये कैसे समझाऊं

विचार

गंगा नहाये पाप धुले, साबुन धोये मैल |
ऐसो कलंक ना पाइओ, ना छुटे कहूँ गैल ||

मौत आ जाये तो मैं जिंदगी पाऊं |
मरने की चाहत मैं जिए चला जाऊं ||

मन को भँवरा बना के काहे ढूंढे फूल|
खुशबु तेरे तन छुपे काहे फांके चूल ||

मन की नाव डोली फिरे, छोर नज़र ना आये |
राजीव छोर भीतर छिपा काहे धुधन जाये ||

नारी को ना समझो तुम नारी है कितनी कमज़ोर |
नारी से ही नर जन्मता नर की शक्ति उसमे जोड़ ||

दर्द का मर्म ना जाने कोई हर ज़ख्म से इसका रिश्ता है |
कभी हलक से कभी पलक से पल पल पल पल रिसता है ||

मूक रहो तो जग समझे किता तोकू ज्ञान |
राजीव मुह खुलते ही खुले ज्ञानी को अज्ञान ||

मुस्कराहट तेरा क्या कहना |
स्वर्ग का एहसास तेरा बहना ||

धरती को तुम जितना खोदो जितना छेदों
कुछ ना कुछ ये देती है |
राजीव जाने का समय जब आये तो देखो
बाँहों में तुमेह भर लेती है ||

सुई से तलवार तक क्यूँ कोई जान ना पाए |
शब्दों में है क्या छुपा जो घाव गंभीर बनाय||

किती मानव भूल करे जोहे मौत की बात
मौत तो वाके संग रहे रूप बदल कर ठाट |
रूप बदल कर ठाट कबहू दबोचे तोकू
राजीव समझ यह सच अगर समझे तोकू ||

मेरी (बूंद) क्या बिसात जो सागर से मुकाबला करूँ |
पर सागर रखे ज्ञात मुझ बूंद से उसका अस्तित्व है ||

कैसा ये मोड़ आया
जिंदगी हो गई खड़ी
दूर होती जा रही
रिश्ते की हर लड़ी

मौत जिंदगी को तू कब तक ढोना चाहेगी
समय समय पर उसको छध्म बाग़ दिखाएगी
बेचारी जिंदगी तेरे चुंगल से कब छुट पायेगी
राजीव बता, एक दिन ये सवयं मौत बन जायगी

छदम भेष धारण किये, पल पल हमे ललचाये |
कभी ये जीवन कभी ये रिश्ते जोडन को मचलाए||

चक्षु घुमे चहुँ ओर देखे दुनिया सारी|
क्यूँ ना देखे तन जामे चक्षु उभारी||

राजीव देखे जग को जग कबहू अपना होई |
एक बार कर आँख बंद जग एक सपना होई ||

महक महक की सुनो कोई ज़ुबां नहीं होती
महक महकेगी कहाँ यह कभी नहीं कहती

थुल थुल बदन को देख कर ब्रह्म ताक़त का होय
राजीव मांस की यह गाड़ी एक पल मैं माटी होय

प्रेम तुझसे कब कहे कर तू उसका बखान
जो बखान हो प्रेम का वो व्यापार समान

रविवार, 25 जुलाई 2010

कवि कौन

भावनाओ को पिरो लता हूँ
इसलिए मै कवि  कहलाता हूँ
मंच पर जब बैठता

सुनने सुनाने यदा कदा
महान काव्य सागर में
स्वयं को अधूरा पाता हूँ


रस पढ़े छंद पढ़े
गद्य पद्य के द्वन्द पढ़े
लय में लिखूं सदा
मात्राओं का ज्ञान लिया
लिखने बैठूं उससे पहले
विषय को पूरा जान लिया


पर काव्य सागर में मैंने
ज्यूँ ही एक गोता लगया
अपने आप को अलग थलग
एक अजब संसार पाया
जो छपता है वो सुनता नहीं
जो सुनता हूँ वो दीखता नहीं
जो पसंद है वो कहीं कहीं
प्रकाशक की पसंद सही


एक प्रशन मुझमे उमड़ रहा
असहनीय न जाये सहा
क्या कवियों की कतार में
वही कवि कहलाता है
जो जीवन जीता कुछ अलग
और कुछ अलग लिख पाता है


क्या दोहरा जीवन जीने वाला
काव्य सही रच पाता है
आँख और ह्रदय मूँद कर
जीवन समझ वो पाता है
मै जो सहता हूँ वो लिखता हूँ
इसलिए नहीं मै चल पाता हूँ

पर जैसे तैसे जोड़कर
लिखता हूँ और सुनाता हूँ
और बिना छपे किसी वरके पर
मै भी कवि कहलाता हूँ

शनिवार, 24 जुलाई 2010

बोली

राजीव शर्मा आकर बोले
माँ मेरा भी मनुवा डोले
चक्कर कुछ ऐसा चला दो
मेरा भी तुम विवाह रचा दो
अच्छी हो चाहे मैली कुचली
तनख्वा हो छ अंको वाली
ससुर हो अच्छे पैसे वाला
न हो कोई साली साला
एक बिन भरा चेक हो साथ
लड़के का खर्चा हो साथ
गैस सिलेंडर गाड़ी बंगला
नहीं दिखूं मै उससे कंगला
यदि ये सब देने में हो फेल
तो साथ ज़रूर दे मिटटी का तेल
दहेज़ हमे कुछ न चाहिए
बिकाऊ है वर खरीदार चाहिए
जोहनी पड़े न कोई बाट
पत्र वयेव्हार का पता शमशान घाट

रविवार, 18 जुलाई 2010

कवि क्यों बना

पिताजी ने कहा
अरे मुर्ख क्यों कवि बनता है तुझे पता है कवि हमेशा भूखों मरता है
और तुझे कौन कवि सम्मेलन में बुलाएगा
अगर बुलाया भी तो खुद भी पिटेगा उसे भी पिटवाएगा
मैंने उनसे कहा
आपको क्या पता मै कवि बनके क्या करूंगा
मेरा तीर एक है शिकार अनेक करूंगा
पैसे संयोजक से सब्जी श्रोताओं से
टूटी पुरानी चप्पलों का व्यापार करूंगा