कलम कवि की
कलम कवि की
बुधवार, 28 जुलाई 2010
प्रेम
वो जो कहे चाँद तो मै चाँद तोड़ लाऊं
सूरज की मांग करे किरणों समेत लाऊं
पर वो मांगे प्रेम है मै प्रेम कहाँ से लाऊं
प्रेम आंतरिक अनुभूति है ये कैसे समझाऊं
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