जब जीना माँगा जीवन से जीने का मकसद खींच लिया
जब चाहा मौत हमे आये उसने मौत का पहलू भींच लिया
जीना मरना जब हाथ नही तो क्यूँ चाह रहें सदा साथ यहीं
न अपने चाहे कुछ भी मिले, न बिन बहार खिले फूल कहीं
खुशियों में अब कैसी ख़ुशी गम में बिन नम अब नयन रहें
शांति चाहे ढूंढे न मिले पर बेचैन दिलों में अब चैन रहे
जब चाहा मौत हमे आये उसने मौत का पहलू भींच लिया
जीना मरना जब हाथ नही तो क्यूँ चाह रहें सदा साथ यहीं
न अपने चाहे कुछ भी मिले, न बिन बहार खिले फूल कहीं
खुशियों में अब कैसी ख़ुशी गम में बिन नम अब नयन रहें
शांति चाहे ढूंढे न मिले पर बेचैन दिलों में अब चैन रहे
1 टिप्पणी:
धीरे धीरे ही सही विचारों में साम्य बना रहे।
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