जिनसे हमे थी नफ़रत तुम्हारे वो मीत हुए
ज़ख्म जो दिये हैं तुमने हमारे वो गीत हुए
जब भी मिला है मौका ज़ख्मो को यूँ है छेडा
हर रिस्ते ज़ख्म पर तुम मुस्कान ही लिये
अपनी थी ये नादानी विश्वास तुम पर करके
नफ़रत भरी नजर की चाहत में यूँ जिये
एक वादा कर सको तो अहसान हो तुम्हारा
मोहबत अगर हो ऐसी न मोहबत उसे कहे
खुदा उनके गुनाह बक्शे मोहबत जो यूँ करे
ऐसी मोहब्त राजीव दुश्मन भी नही सहे
ज़ख्म जो दिये हैं तुमने हमारे वो गीत हुए
जब भी मिला है मौका ज़ख्मो को यूँ है छेडा
हर रिस्ते ज़ख्म पर तुम मुस्कान ही लिये
अपनी थी ये नादानी विश्वास तुम पर करके
नफ़रत भरी नजर की चाहत में यूँ जिये
एक वादा कर सको तो अहसान हो तुम्हारा
मोहबत अगर हो ऐसी न मोहबत उसे कहे
खुदा उनके गुनाह बक्शे मोहबत जो यूँ करे
ऐसी मोहब्त राजीव दुश्मन भी नही सहे
5 टिप्पणियां:
गहरे अन्दर उतरते शब्द..
जब भी मिला है मौका ज़ख्मो को यूँ है छेडा
हर रिस्ते ज़ख्म पर तुम मुस्कान ही लिये
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल ......
bahut khub
behtarin.....lajwab
बेहतरीन प्रस्तुति
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