रविवार, 24 जून 2012

ज़ख्म

जिनसे हमे थी नफ़रत तुम्हारे वो मीत हुए
ज़ख्म जो दिये हैं तुमने हमारे वो गीत हुए

जब भी मिला है मौका ज़ख्मो को यूँ है छेडा
हर  रिस्ते ज़ख्म पर तुम  मुस्कान ही लिये

अपनी थी ये नादानी विश्वास तुम पर करके
नफ़रत भरी नजर की चाहत में यूँ जिये

एक वादा कर सको तो अहसान हो तुम्हारा
मोहबत अगर हो ऐसी न मोहबत उसे कहे

खुदा उनके गुनाह बक्शे मोहबत जो  यूँ करे
ऐसी मोहब्त राजीव  दुश्मन भी नही सहे

5 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

गहरे अन्दर उतरते शब्द..

Sunil Kumar ने कहा…

जब भी मिला है मौका ज़ख्मो को यूँ है छेडा
हर रिस्ते ज़ख्म पर तुम मुस्कान ही लिये
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल ......

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

bahut khub

Anamikaghatak ने कहा…

behtarin.....lajwab

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति