तुने प्यार किया था हवाओं से
अब धोखा मिला तो कसूर क्या
क्यूँ दुखा रहा है दिल को अब
हवा ठहरी क्या कभी एक जगह
तुने नाव उतारी थी उस पानी में
तुझे घमंड था हाथ पतवार का
अब देख भंवर में फंसा है तू
तुझे पानी की मार का न पता
तुझे तेरी वफ़ा पे तो नाज़ बहुत
तुने कभी किया न शिकवा गिला
आज जब वो चले तुझे छोड़ कर
तुने उनकी जफा को वफ़ा कहा
उड़ते पंछी कब बंधे एक डाल से
क्यूँ डाल कहे वो थे बेवफ़ा
अब उड़ गये उन्हें उड़ने दो
तकदीर में था तेरी यही बदा
अब धोखा मिला तो कसूर क्या
क्यूँ दुखा रहा है दिल को अब
हवा ठहरी क्या कभी एक जगह
तुने नाव उतारी थी उस पानी में
तुझे घमंड था हाथ पतवार का
अब देख भंवर में फंसा है तू
तुझे पानी की मार का न पता
तुझे तेरी वफ़ा पे तो नाज़ बहुत
तुने कभी किया न शिकवा गिला
आज जब वो चले तुझे छोड़ कर
तुने उनकी जफा को वफ़ा कहा
उड़ते पंछी कब बंधे एक डाल से
क्यूँ डाल कहे वो थे बेवफ़ा
अब उड़ गये उन्हें उड़ने दो
तकदीर में था तेरी यही बदा
2 टिप्पणियां:
वाह बहुत खूब.... अनुपम भाव संयोजन समय मिले आपको कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/
हवाओं के साथ में गिरने का खतरा तो बना ही रहता है।
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