बुधवार, 6 जून 2012

पंछी

तुने प्यार किया था हवाओं से
अब धोखा मिला तो कसूर क्या
क्यूँ दुखा रहा है दिल को अब
हवा ठहरी क्या कभी एक जगह

तुने नाव उतारी थी उस पानी में
तुझे घमंड था हाथ पतवार का
अब देख भंवर में फंसा है तू
तुझे पानी की मार का न पता 

तुझे तेरी वफ़ा पे तो नाज़ बहुत
तुने कभी किया न शिकवा गिला
आज जब वो चले तुझे छोड़ कर
तुने  उनकी जफा को वफ़ा कहा

उड़ते पंछी कब बंधे एक डाल से
क्यूँ डाल कहे वो थे बेवफ़ा
अब उड़ गये उन्हें उड़ने दो
तकदीर में था तेरी यही बदा   


2 टिप्‍पणियां:

Pallavi saxena ने कहा…

वाह बहुत खूब.... अनुपम भाव संयोजन समय मिले आपको कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हवाओं के साथ में गिरने का खतरा तो बना ही रहता है।