सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

चल बसा समझना

तुमेह खो कर हमने है पाया था खोया
मिले तुम थे जबसे, जगा था पर सोया
वो नयनो में मोती कम होई थी ज्योति 
तारों से था पूछा क्यूँ आँख नम  होती
हम जुदा थे हमीसे, हम हमे ढूँढ़ते थे 
यूँ मिलते थे सबसे, ज्यूँ सबमे तुम्ही थे 
अचानक ये कैसा झोंका. तूफान का आया 
सभी तो खड़े थे, पर तुमको को नहीं पाया

जो जाना था तुमको, तो आना था कैसा
न अब का ही रखा, न पहले सा छोड़ा
चलो जो हुआ सो, हुआ था जो होना 
अब जीना हमे है पर, तुम पल न रोना 
ये जग जानता है न तुम तुम हो न हम 
जख्म जो दिए तुमने, हम रखेंगे फोया 

यादें मिलेंगी जो तुम्हे हर राह पर 
उन्हें देखकर तुम, बस अनदेखा करना
संजोये हमारे, स्वप्नों को बस तुम
स्वप्न ही समझना, न देखा करना
तुम तो चले गये, मुस्कुरा बिखेरे
हमे भी अब तुम, चल बसा समझना  

तुमेह खो कर हमने है, पाया था खोया
मिले तुम थे जबसे, जगा था पर सोया

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुन्दर पंक्तियाँ।

Sam ने कहा…

great lines bhaiya..