शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

जीवंत जीवन

माटी गूँथ आकार मिला
न जीने को संसार मिला
था नाम दीया दीया मुझे
व्यर्थ था पड़ा यूँ बुझे बुझे
तभी बाती बतियाने आई
चिंगारी संग तेल सलाई
मुझमे संगम होने लगा
अंधकार में प्रकाश जगा
स्वयं जल जो प्रकाश बहे
जीवंत ही वो जीवन रहे 

 

4 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जीवन जीवंत बना रहे।

Sunil Kumar ने कहा…

स्वयं जल जो प्रकाश बहे
जीवंत ही वो जीवन रहे
saty kaha aaapne ..........

Anamikaghatak ने कहा…

wah!!!

अनुपमा पाठक ने कहा…

जीवंतता बनी रहे!