जग में सुन्दर ममता की मूरत
है अपनी माँ
घूम के देखि दुनिया सारी
माँ नहीं मिली वहां
कष्ट झेल कर, नौ नौ महीने
दुनिया हमें दिखाती
अपने खून को दूध बनाकर
छाती से है पिलाती
ऐसा दूध और ऐसी ममता
हमको मिले कहाँ
घूम के देखि दुनिया सारी
माँ नहीं मिली वहां
5 टिप्पणियां:
excellent...
बहुत सुन्दर।
आपके इस कविता से ज्यादा प्रभावित् आपके ब्लॉग के टैगलाइन ने किया"आज हम लिखतें हैं तुम सुनना नहीं चाहते , कल जब सुनना चाहोगे लिखने वाला ना होगा .........." पहली बार पढ़ रहा हूँ, अच्छा लगा
intresting ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
बेहद सुन्दर!
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