बुधवार, 30 नवंबर 2011

ममता की मूरत

जग में सुन्दर ममता की मूरत
है अपनी माँ
घूम के देखि दुनिया सारी
माँ नहीं मिली वहां
कष्ट झेल कर, नौ नौ महीने
दुनिया हमें दिखाती
अपने खून को दूध बनाकर
छाती से है पिलाती
ऐसा दूध और ऐसी ममता
हमको मिले कहाँ
घूम के देखि दुनिया सारी
माँ नहीं मिली वहां

5 टिप्‍पणियां:

Sam ने कहा…

excellent...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत सुन्दर।

News And Insights ने कहा…

आपके इस कविता से ज्यादा प्रभावित् आपके ब्लॉग के टैगलाइन ने किया"आज हम लिखतें हैं तुम सुनना नहीं चाहते , कल जब सुनना चाहोगे लिखने वाला ना होगा .........." पहली बार पढ़ रहा हूँ, अच्छा लगा

Pallavi saxena ने कहा…

intresting ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

अनुपमा पाठक ने कहा…

बेहद सुन्दर!