मंगलवार, 29 नवंबर 2011

मैं भूल गया

मुझे याद क्यूँ ना कुछ रहा
मैं भूल गया क्यूँ कल का सहा

पानी मे वो प्रतिबिम्ब था
प्रतिबिम्ब ने था मुझसे कहा
जो तुझमे है वो उड़ेल दे
हर्फों के सबको खेल दे
तेरी वेदना या चेतना
उसमे हो तेरा लिखा सना
जो पाया मैंने संचय किया
लिखने वो बैठा जो था सहा

पर हाय रे यह क्या हुआ
मैं भूल गया क्यूँ कल का सहा

एक बार फिर एक राह दिखी
मरू मैं बैठा लिखने अपनी लिखी
मैंने अपने को फिर छुआ
बचा कूचा फिर हर्फ़ हुआ
मरू की शांति संग थी
मेरी वो भ्रान्ति तंग थी
मै लिखता जाता हर कण में
वो छुपता जाता हर क्षण मे
मैं पुनः जो बैठा लिखने को

पर हाय रे यह क्या हुआ
मैं भूल गया क्यूँ कल का सहा

4 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

वर्तमान में जी लेने का आनन्द अप्रतिम है।

Pallavi saxena ने कहा…

कुछ बीटी बातें भूल कर भी भुलाइन नहीं जा सकती और कुछ को ना चाहते हुए भी भूलना पड़ता है बेहतरी इसी में है की कल को भी अपने मन में साथ लेकर वर्तमान जी लिया जाए....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोसर पर आपका स्वागत है

अनुपमा पाठक ने कहा…

मै लिखता जाता हर कण में
वो छुपता जाता हर क्षण मे
ऐसा ही तो होता है!

शारदा अरोरा ने कहा…

badhiya , kal ka saha to bhoolna hi behtar hai ...yoon hi nahi kahte ki vakt marham hai..