शनिवार, 12 नवंबर 2011

हम नौकर उनके

माँ सब कहते हम नौकर उनके
हम पलते है खाकर टुकड़े उनके
माँ तू ही सारा दिन लगी यूँ रहती
दर्द बदन अपने हर अंग में सहती
मुझे खेलता देख, देख मुख उनका 
क्यूँ हर क्षण चढ़ा चढ़ा सा होता है
माँ मुझे बता ये नौकर क्या होता है

हम मेहनत कर तब कुछ कमा पाते 
वो घर बैठे बतियाते फिर भी कमाते
ऐसे कौन से काम हैं जो हमे न आते
कर वो धन्ना सेठ हम नौकर कहाते
तू कहे  मेहनत की रोटी अच्छी होती
तेरी मेहनत देख सेठ खुश न होता है
माँ मुझे बता ये नौकर क्या होता है

काका सर पर पत्थर रख शरीर खोते
उनकी मेहनत से ही महल सरीखे होते
पर बनने पर उनमे न वो जा सकतें हैं
एक निवाला पाने की वहीं राह जोतें हैं
ताज शाहजहाँ ने बनवाया सब जाने हैं
पर मजदूर बना ताज क्यूँ हक खोता है
माँ मुझे बता ये नौकर क्या होता है


छोटू भाई बर्तन घसता पानी भरता
दूर से ही देख मदरसा आहें है भरता
गाली ठोकर खाकर कभी पेट भरता
हर मौसम वस्त्र उसका फटा ही होता  
झूठन उसका है एक चर्चित निवाला
भाई हंस कर कैसे सारे ग़म सहता है
माँ मुझे बता ये नौकर क्या होता है 
   
छोटू रामू पप्पू कालू तम्बी ओये अबे
रानी काकी बुढिया कल्लो अरी मरी मरे
इन नामो संग क्या अपना रिश्ता पुराना
जहाँ सुने ये नाम समझो वो नौकर जाना
माँ काहे तू बुत बनी सब सुनती जाती है
कुछ तो कह मन मेरा विचलित होता है
माँ मुझे बता ये नौकर क्या होता है

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

प्रणाम आपको, इस विषय में इससे गहरी पंक्तियाँ नहीं पढ़ीं।

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा!!