प्रिय उस पार तुम गाड़ी में
इस पार हमारे नैन खड़े
उस पार है सामान बंधा
इस पार हमारे नैन थमे
उस पार बस तुम चलने को
इस पार सोच हैं पाँव जमे
गठबंधन हो जब ढीले पड़े
रिश्तों की महत्वता जाती है
बीच पड़ती बढती है खाई
जिसके तुम हम दोनों ओर खड़े
इस पार हमारे नैन खड़े
उस पार है सामान बंधा
इस पार हमारे नैन थमे
उस पार बस तुम चलने को
इस पार सोच हैं पाँव जमे
गठबंधन हो जब ढीले पड़े
रिश्तों की महत्वता जाती है
बीच पड़ती बढती है खाई
जिसके तुम हम दोनों ओर खड़े
3 टिप्पणियां:
सुंदर एवं सार्थक रचना.... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
भाव के प्रवाह में,
है नित्य पाट बढ़ रहा।
सुन्दर रचना
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