मंगलवार, 22 नवंबर 2011

दोनों ओर खड़े

प्रिय उस पार तुम गाड़ी में
इस पार हमारे नैन खड़े
उस पार है सामान बंधा
इस पार हमारे नैन थमे
उस पार बस तुम चलने को
इस पार सोच हैं पाँव जमे
गठबंधन हो जब ढीले पड़े
रिश्तों की महत्वता जाती है
बीच पड़ती बढती है खाई
जिसके तुम हम दोनों ओर खड़े

3 टिप्‍पणियां:

Pallavi saxena ने कहा…

सुंदर एवं सार्थक रचना.... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

भाव के प्रवाह में,
है नित्य पाट बढ़ रहा।

Gyan Darpan ने कहा…

सुन्दर रचना

Gyan Darpan
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