कलम कवि की
कलम कवि की
शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018
अपना मोती
मौज नहीं चाहिये मैं साहिल चाहता हूँ
खुशीय़ां ज़िंदगी मे षमिल चाहता हूं
बुंद हुं सागर की सीप की टलाश में
चोला बदल अपना मोती चाहता हूं
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