गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

शान्ति

मन क्यों उदास है
ऐसा क्या पाया उसने
जो ना मेरे पास है

विलासता मेरे सम्मुख
धन भरा अपरम्पार है
आम सोच से परे
फैला ये व्यापार है

ढूँढता फिरे मन और किसे
घूम घूम आ मस्तक घिसे

वो कहे सब है पर वो नही
बिना पाए जीवन निराश है

इस पहेली से फिरा मै जूझता
रहा एकांकी मै सभी से पूछता
पूर्ण सुख, क्या ना मेरे पास है
सच है मुझे शान्ति की तलाश है

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

उस शान्ति में ही दुनिया भर की समृद्धि के निष्कर्ष छिपे हैं।