कलम कवि की
कलम कवि की
मंगलवार, 14 दिसंबर 2010
इश्के दरिया
प्याला भरा है सामने, यारों आओ अंजाम दो
राजीव इश्के दरिया ये चूमो डुबो और जान दो
वो जिनसे सब मिलने को तरसते हैं
हम हैं जो उनकी आँखों में बसते हैं
1 टिप्पणी:
रंजना
ने कहा…
वाह....
वाह....
वाह....
15 दिसंबर 2010 को 3:03 pm बजे
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1 टिप्पणी:
वाह....
वाह....
वाह....
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