गुरुवार, 26 जनवरी 2012

नैन मुस्काएं

मेरे क्यूँ नैन बहते हैं कोई तो आकर ये पूछो
तड़प कैसी जगी इनमे कोई उठा कर तो पूछो

ये चाहते गुनगुनाना है किसे पर ढूंढ़ते हैं ये
सरगम यूँही छिड जाए जो तुम आकर ये पूछो

दिखे जो ग़म तुम्हारे संग तो कैसे नैन मुस्काएं
दुआ  बस तेरी खुशिओं की खुदा से जाकर ये पूछो 
     
घर दर की इन्हें चाहत कोई कान्धा नही मिलता
ये चाहते हैं ठहर जाएँ अगर मुस्कुरा के तुम देखो

प्यार में छलछला जाते ख़ुशी अपनी दिखाने को
अगर यकीं नही तुमको प्यार लुटाकर तब पूछो
 
वफा से पहले लगे बा या लगे बे के बाद वफा
एक से जिंदगी मिलती दूजी से तबाह समझो  

प्यार की बेल को देखो दिनोदिन बढती जाती है
बिना ही खाद और पानी, ज़रा लगा के तुम देखो
 
सागर में तरसता सीप बूंद एक मीठी पाने को
मोती हर बूंद बन जाये तड़प जगा कर तो देखो 
 
मेरी दीवानगी हद ने मुझे जला कर रखा है
चाह थी चाँद पाने की छुपा सूरज ने रखा है

2 टिप्‍पणियां:

Pallavi saxena ने कहा…

वाह बहुत खूब लिखा है आपने ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://aapki-pasand.blogspot.com/

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बेहद खूबसूरत कविता..