मंगलवार, 3 जनवरी 2012

चंदा की चांदनी

उम्र का ये पड़ाव
उफनता शांत पडा था
अचानक जैसे चंदा को देख
उम्र छोड़ लहरें मिलने दौड़ी

एक बदली धुंधला कर गई
पर चमक यादें फिर लाई
तुम तो अब तक न समझी
पर लगता था उम्र लौट आई

जर्जर तन न था किसी काबिल
पर उसपर लौहा प्रहार कर सम्भालने वाला
स्वप्न जैसे तुमसे पुन साकार हुआ
एक चंदा की चांदनी बन तुम आई  

 
 

2 टिप्‍पणियां:

Pallavi saxena ने कहा…

जर्जर तन न था किसी काबिल
पर उसपर लौहा प्रहार कर सम्भालने वाला
स्वप्न जैसे तुमसे पुन साकार हुआ
वाह बहुत खूब लिखा है आपने...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है :-)

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हर लहर को चाँद खींचे...