उम्र का ये पड़ाव
उफनता शांत पडा था
अचानक जैसे चंदा को देख
उम्र छोड़ लहरें मिलने दौड़ी
एक बदली धुंधला कर गई
पर चमक यादें फिर लाई
तुम तो अब तक न समझी
पर लगता था उम्र लौट आई
जर्जर तन न था किसी काबिल
पर उसपर लौहा प्रहार कर सम्भालने वाला
स्वप्न जैसे तुमसे पुन साकार हुआ
एक चंदा की चांदनी बन तुम आई
उफनता शांत पडा था
अचानक जैसे चंदा को देख
उम्र छोड़ लहरें मिलने दौड़ी
एक बदली धुंधला कर गई
पर चमक यादें फिर लाई
तुम तो अब तक न समझी
पर लगता था उम्र लौट आई
जर्जर तन न था किसी काबिल
पर उसपर लौहा प्रहार कर सम्भालने वाला
स्वप्न जैसे तुमसे पुन साकार हुआ
एक चंदा की चांदनी बन तुम आई
2 टिप्पणियां:
जर्जर तन न था किसी काबिल
पर उसपर लौहा प्रहार कर सम्भालने वाला
स्वप्न जैसे तुमसे पुन साकार हुआ
वाह बहुत खूब लिखा है आपने...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है :-)
हर लहर को चाँद खींचे...
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