जब आम आदमी था मै
सब मेरे मै सबका था
याद मुझे वो दिन आता
कुर्सी पाने मै लपका था
जब से कुर्सी चाही मैंने
बस कुर्सी ही चिपक गई
सीढ़ी जो उपर ही लाती
चढ़ते ही वो खिसक गई
अब न मुझको तुम दीखते
न मुझ तक पहुंचें आवाजें
कुर्सी वालों की दुनिया मै
जनता के हैं बंद दरवाजे
कुर्सी की चाहत में जीना
कुर्सी की चाहत में मरना
कुर्सी पाने की चाहत में
दंगे, संग गाली और धरना
कुर्सी की चाहत में जीना
कुर्सी की चाहत में मरना
कुर्सी पाने की चाहत में
दंगे, संग गाली और धरना
कुर्सी वालों की दुनिया में
अपने पराये का भेद कहाँ
नेकी से न कोई वास्ता
पर करते नेकी नेक यहाँ
साहूकारों की खिलती बांछे
जिनका मुझ पर दावँ लगा
मेरी जीत में जीते हैं वो
आते पाते जाते आस जगा
जिनसे नफरत सदा रही
वो द्वार बंधे यमदूतों से
कब किसकी आई लें चलें
हम जियें मरें यूँ भूतों से
राजीव क्यूँ चाहे कुछ करना
जब भरने का अवसर आया
तकदीर ने खोले सब ताले
भर,खाली बोरे,माणिक माया
नेकी से न कोई वास्ता
पर करते नेकी नेक यहाँ
साहूकारों की खिलती बांछे
जिनका मुझ पर दावँ लगा
मेरी जीत में जीते हैं वो
आते पाते जाते आस जगा
जिनसे नफरत सदा रही
वो द्वार बंधे यमदूतों से
कब किसकी आई लें चलें
हम जियें मरें यूँ भूतों से
राजीव क्यूँ चाहे कुछ करना
जब भरने का अवसर आया
तकदीर ने खोले सब ताले
भर,खाली बोरे,माणिक माया
2 टिप्पणियां:
सरथक प्रस्तुति ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्त पर अपप्का स्वागत है
Really very niceeeeee
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