मंगलवार, 17 जनवरी 2012

पुरुषार्थ जगाओ

पुरुष हो पुरुषार्थ जगाओ
कह कर वो तो चले गए
बदला समय ना सोचा होगा
नारी से ही हम छले गए

पुरुष पुरुष सा दीखता ना अब
नारी चरणों में शीश नवा
बस ये जन्म सुख से बीते
दांत मुख भींच सहे गए

सावित्री सीता हुई धरा पर
सुखद पौराणिक हैं कथाएं
पर पुरुष संग या यम जंग
दोनों में नारी सम ही बहे

आज का युग नारी चरणों में
पुरुषार्थ पुरुषों का यूँ बहे
बदली विधि की लिपि यूँ
हर क्षण धक धक लगी रहे

जो बीत गया उनकी कृपा से
आने वाला भी सुखद भए
पुरुषों अब पुरुषार्थ जगाओ
छोड़ अहम मान जो नारी कहे
  
 

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

वाह, बड़ा सच है यह..

सदा ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।