शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

ना आवेगा

नया सवेरा
नई आशा
पर जीवन की परिभाषा
ना बदली है ना बदलेगी

खिलें सभी
मिलें तभी
एक स्वप्न जैसी यह आशा
ना पूरी हुई ना होगी

नीचा ऊँचें
ऊँचा खींचे
दिखे बराबर की टोली
ना दिखी है ना दिखेगी

एक विश्वास
अपने ऊपर
दूजे को ना सिद्ध करें
ना जमा है ना जमेगा

जीवन मृत्यु
मृत जीवन
समझ में सबको आवे
ना आया है ना आवेगा   

3 टिप्‍पणियां:

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

वाह बहुत बढिया


ऐसी कविता के भाव पहली बार पढ़ने को मिले ...शुभकामनाएँ

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सत्य उद्घाटित करती पंक्तियाँ।

बेनामी ने कहा…

बहुत धन्यवाद