नया सवेरा
नई आशा
पर जीवन की परिभाषा
ना बदली है ना बदलेगी
खिलें सभी
मिलें तभी
एक स्वप्न जैसी यह आशा
ना पूरी हुई ना होगी
नीचा ऊँचें
ऊँचा खींचे
दिखे बराबर की टोली
ना दिखी है ना दिखेगी
एक विश्वास
अपने ऊपर
दूजे को ना सिद्ध करें
ना जमा है ना जमेगा
जीवन मृत्यु
मृत जीवन
समझ में सबको आवे
ना आया है ना आवेगा
नई आशा
पर जीवन की परिभाषा
ना बदली है ना बदलेगी
खिलें सभी
मिलें तभी
एक स्वप्न जैसी यह आशा
ना पूरी हुई ना होगी
नीचा ऊँचें
ऊँचा खींचे
दिखे बराबर की टोली
ना दिखी है ना दिखेगी
एक विश्वास
अपने ऊपर
दूजे को ना सिद्ध करें
ना जमा है ना जमेगा
जीवन मृत्यु
मृत जीवन
समझ में सबको आवे
ना आया है ना आवेगा
3 टिप्पणियां:
वाह बहुत बढिया
ऐसी कविता के भाव पहली बार पढ़ने को मिले ...शुभकामनाएँ
सत्य उद्घाटित करती पंक्तियाँ।
बहुत धन्यवाद
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