शनिवार, 1 दिसंबर 2012

चलते चलते

जीने की तमन्ना हम भी रखते हैं
खुशिओं के साथ गम भी रखते हैं
ठहाके लगा कर हँसाते हैं तुमेह
पर आँखों नम  हम भी रखते हैं

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तुम मिलना नही चाहते कोई बात नही
न देखना दिखाना न दिल में जज़्बात सही
आग लगानी थी ज़माने ने लगा दी
पर तन, मन की प्यास बुझाएगा वहीं

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हम जानते हैं तुमेह हमारी ज़रूरत नही
पर जहाँ में जिया दूसरों के लिए जाता है
राजीव पर अहसान जो दो कदम संग चले
कोई पूछे मरने के बाद कैसे जिया जाता हैं

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हम भी जीते हैं, रुच रुच कर..

बेनामी ने कहा…

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