शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

तुम

तुम धोखे खाती रही और संभालती रही
दर्द ने बढ़ाये हाथ और तुम थामती रही
इन्ही सब के बीच रिश्ता प्यार का मिला
धरोहर न और को मिले तुम टालती रही

तुम आज की हो यही ज़माना कहता है
मिला जो लुटाती हो ज़माना कहता है
मुस्कुरा सहती रही सितम जब भी हुये
बिन तराशा पत्थर हो ज़माना कहता है

मोती तेरे अश्क़ न हो जाएँ इश्क हमारा
कत्ल ए आम हो ग़म तेरे इश्क हमारा
शानो पर तेरे दम निकले जब निकले
जहान रश्क करे ऐसा हो इश्क हमारा
 

3 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब राजीव जी ...
प्रेम को नई ऊँचाइयों में बाँधा है ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत गहरा..बहुत खूब..

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत खूब कहा राजीव जी...
दाद कबूल करें.

सादर
अनु