सोमवार, 9 जुलाई 2012

प्रेम में न जिए

कैसे तबाह करके मुझे तुम चले गये
एक झलक दिखला के दीवाना सा कर गये
आज़ाद था घूमता दिल की लगी से दूर
दिल को क्यों लगा कर दिल्लगी सी कर गए
जग में कोई जिये तो जीने उसे तुम दो
दिल को न वो जानता दीवाना न तुम कहो
मोहब्बत की उस गली से उसे वास्ता नही
हुस्न की झलक से क्यों मदहोश तुम करो
राजीव देख जग को अब कुछ इस तरह कहे
करुणा का रस जो पिये वो प्रेम में न जिए   

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कहाँ रह जाता है फिर पहले सा जीवन..