तुम ठहरी शहर की छोरी
मै खेड़े गाँव का बावला
ये प्रेम क्यूँ कैसे हो गया
मै मूढ़ फंसा अच्छा भला
तेरी सादगी मुझे है भाई
छ्ल कपट की बू न पाई
मै चाहूँ तुझे अपना पति
मुझे तू ही लगा सबसे भला
तेरी गोरी निखरी काया
यहाँ तगड़ी धूप का साया
तुझे दुखी दखने से पहले
ओ ऊपरवाले मुझे बुला
पिया जहाँ तू रहे मै रहूँ
तेरी सूखी में भी सुखी रहूँ
मेरा सोया भाग्य खुल जाये
जो लेलूं तेरी बुरी बला
अरी पगली जिद तू छोड़ दे
किसी शहरी से नाता जोड़ के
मुझ गरीब के पास न रहने को
नई चुनरी को नहीं एक धेला
तेरी गोरी निखरी काया
यहाँ तगड़ी धूप का साया
तुझे दुखी दखने से पहले
ओ ऊपरवाले मुझे बुला
पिया जहाँ तू रहे मै रहूँ
तेरी सूखी में भी सुखी रहूँ
मेरा सोया भाग्य खुल जाये
जो लेलूं तेरी बुरी बला
अरी पगली जिद तू छोड़ दे
किसी शहरी से नाता जोड़ के
मुझ गरीब के पास न रहने को
नई चुनरी को नहीं एक धेला
नही चुनरी तुझसे मांगू
ये शहरी रूप मै त्यागूँ
बस तुझ संग फेरे हो जाएँ
चाहे उसके बाद मर जाऊं
न ऐसे शब्द तू बोल
ले खड़ा मै बाहें खोल
आजा दोनों एक हो जाएँ
आई है मिलन की शुभ बेला
3 टिप्पणियां:
सादगी और सच्चाई से कही गयी दिल की बात अच्छी लगी| बधाई,,,,
वाह, अन्तर स्पष्ट है।
kamal ki kavita ha, bahut achha.
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